Book Title: Tattvavetta
Author(s): Pukhraj Sharma
Publisher: Hit Satka Gyanmandir

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Page 52
________________ तत्ववेत्ता बैठे रहना तो कोई विशेष नहीं पर आप के गुणों और लोकप्रियता में प्रभावित होकर अजैन भी काफी संख्या में छाया की भाँति आपके सुमधुर उपदेशों का पान करते बैठे ही रहते । धन्य है उन्होंने ऐसे महापुरुष के उपदेशों का लाभ उठा कर अपने जीवन को सफल बनाया | : ४० : आप का जीवनोद्देश्य सदा ही यह रहा कि मैं अब तो अधिक से अधिक समय संसार के समस्त प्राणियों की सेवा में व्यतीत करूँ और धार्मिक भावना उनमें जागृत कर कल्याण का सच्चा रास्ता बता जाउं । जिससे वे अपना जीवन सफल बना सकें। आप के इन्हीं गुणों से काफी जीवोंने लाभ उठाया था, जहाँ तक हो सका आपने भी प्रत्येक व्यक्ति को संतुष्ट करने का भरसक प्रयत्न किया । ज्ञानमंदिर की स्थापना करने के पश्चात् आपने अपनी जन्मभूमि की ओर प्रयाण किया । घाणेराव से प्रयाण कर सीधे पाली पधारे । यहाँ की जनताने आपका बडा स्वागत किया। साथ ही चातुर्मास के लिये आग्रहपूर्ण विनती भी की | अतः आपने संवत् १९५२ का चातुर्मास यँही कर आगे प्रस्थान किया । इस के बाद आप क्रमशः जोधपुर, नागोर आदि में १९५३ - ५४ का चातुर्मास कर सीधे मेडता पधारे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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