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विशेष विवरण
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महाराज के शिष्य श्री आनन्दसागरजी; जो कि वर्तमान में आगमोद्धारक जैनाचार्य श्रीमद् सागरानन्दसूरीश्वरजी म. के नाम से प्रसिद्ध हुए; को योगोद्वहन कराकर १९४७ के ज्येष्ठ कृष्णा तीज के दिन श्री संघ के समक्ष बडी दीक्षा दी। साथ ही श्री मूलचंदजी (मुक्तिविजयजी) महाराज के शिष्य श्री कमलविजयजी को तथा आणंदविजयजी को गणी तथा पंन्यासपद से अलंकृत किये । इस सम्बन्धी एक लेख जो कि लिम्बडी के उपाश्रय के पाट पर लिखा आज भी विद्यमान है। यह व्याख्यान पाट भी उसी शुभ प्रसंग पर बनाया गया था। लेख गुजराती भाषा में है। यह बहुत पूराना होने से स्पष्टतया पढ़ा जाना कठिन सा है। तो भी हमने उसे पाठकों के समक्ष उपस्थित किया है। इसके साथ ही एक चित्र भी है जो कि किसी चित्रकार द्वारा बनाया गया है, वह भी जीर्ण होने से स्पष्ट नहीं प्रतीत होता है।
हमने उस चित्र का ब्लोक बनाने का प्रयत्न भी किया, पर चित्र जीर्ण होने से इस कार्य में असफल ही रहे । वास्ते पाठकों के समक्ष हम उसे लिपिबद्ध ही करते है । आशा है पाठकगण हमें उसके लिये क्षमा करेगें व साथ ही लेख की अपूर्णता के लिये उसे पूर्ण कर हमें इस सम्बन्धी बातें सूचित करेंगे । लेख बीच में न देकर के हम अन्तिम ही दे रहे है।
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