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तत्ववेता
अमदाबाद में प्रवेश किया । जयध्वनि से नगर गूंज उठा ।
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यह चातुर्मास भी आपका श्रीवीर के उपाश्रय में ही हुआ । सेठ हीरामल्ल ने इस समय बड़ी भक्ति की । समय समय पर आपके कई वार सार्वजनिक व्याख्यान भी हुए जिस में हजारों की संख्या में श्रोताओं ने भाग लिया । श्री दोलाजी जवेरी के सुपुत्र श्री वाडीलालभाई तथा कार्यकर्ता मणीलालभाई आदि ने भी इस चातुर्मास के पर्यूषणों के दिनों में तथा ओलियों के दिनों में खुब दिलचस्पी पूर्वक भाग लिया । बडी धूमधाम के साथ चातुर्मास सम्पन्न हुआ । आसपास के कई ग्रामों के श्रावक आपके दर्शन तथा विनती करने आये । इसी प्रसंग पर लिम्बडीवाले शेठ गणीभाई, प्रेमाभाई, लल्लुभाई, जेसिंगभाई और प्रेमचंदभाई आदि भी अमदावाद आये । उन्होंने आगामी चातुर्मास लिम्बडी करने के लिये जोरदार - आग्रहभरी प्रार्थना की । पूज्य पंन्यासजी महाराज श्रावकों की भावनापूर्ण विनती को स्वीकार करते हुए समय पर विहारी बनें । उन्हीं श्रावकों के साथ ही लीम्बडी की ओर प्रयाण किया ।
संवत् १९४७ के महा वद १३ को लीम्बडी नगर में प्रवेश किया । यहाँ आपको गाँव के मुख्य उपाश्रय में टहराये गये | यहाँ आपने अपने आगमगुरु श्री झवेरसागरजी
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