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विशेष विवरण
होने से पुनः तेरापंथीयों ने अपना कुचक्र चला रखा था। गाँवों के मंदिर में मूर्तियों का तोडना, उनमें अशुची फेंकना, कांटे डालना आदि अनेक गंदे कार्यों से मन्दिर की आशातना करवा रहे थे । अतः मझेरा निवासियों ने पूज्य पंन्यासजी महाराज का पधारना सुनकर उन्हें मंदिर की पुनः प्रतिष्ठा कराने के लिये आमंत्रित किया । पंन्यासजी महाराज ने श्रावकों की प्रार्थना को सहर्ष स्वीकार कर उसी समय उन्हीं श्रावकों के साथ हो गये ।
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मझेरा पधारने पर आपको वहाँ का दुषित वातावरण ज्ञात हुआ | आपने एकवार मझेरा में तेरापंथी के पूज्य के साथ शास्त्रार्थ किया | देखने के लिये सारा गाँव उलट पडा । तेरापंथीयों ने कहा कि आप के प्रश्न का उत्तर कल दूंगा । इस पर सारी जनता कल की इन्तजारी में विखर गई । तेरापंथी साधु सुबह बिना किसी को पूछे ही विहार कर: भाग गये । सारी जनता में हाहाकार मच गया कि तेरापंथी हार कर के भाग गये । सब लोग तेरापंथी का तिरस्कार करते हुए पुनः अपने प्राचीन मार्ग पर स्थिर हो गये । इस प्रकार विरोधियों के साथ शास्त्रार्थ कर श्रावकों को पुनः मंदिरमार्गी बनाये | और मंदिर की पुनः प्रतिष्ठा करवा कर जिनभक्ति का आदर्श द्वार सदा के
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