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सत्त्ववेत्ता वर्ताव किया । और समय समय पर सत्य सिद्धान्त उन्हें समझायें, इस का सुमधुर फल निकला कि १-२ वर्ष में ही समस्त मारवाड के करीब करीब समी यतियों के साथ आपका काफि प्रेम हो गया । यति लोग अब तो आपको सम्मानित करने लगे। ___ बाली के उपरोक्त चातुर्मासों के पश्चात् आपने विहार कर गोडवाड की जनता को देशना-सुधा का पान कराया। इस समय के बीच में आप इस प्रान्त के-सादडी, घाणेराव
और देसुरी जैसे प्रमुख नगरों में लगातार चार चातुर्मास किये । इन वर्षों में तो गोडवाड का बच्चा बच्चा आपके नाम को जानने लग गया । जहाँ भी जाते आपका खूब सन्मान होता था।
धीरे धीरे धर्मप्रचार करते करते अब आपने उदयपुर (मेवाड) की ओर विहार किया। अब आप मेवाड के प्रांगण में पहुँच कर उदयपुर की तरफ जारहे थे कि मझेरा के कुछ श्रावकोंने आपका आना सुन आपको मझेरा आनेका आग्रह किया । कारण कि-वहाँ आपके दादा गुरुभ्राता श्री विवेकविजयजी (दुधाधारीजी) महाराज के सदुपदेशों से प्रभा. वित होकर कई तेरापंथी मंदिरमार्गो बन चूके थे । पर इस प्रांत में मूर्तिपूजक साधुओं का कई वर्षों से विचरणा नहीं
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