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गणिपद और पंन्यासपद
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साथ श्री गंभीरविजयजी तथा लाभविजयजी को तो आपने काफि प्रभावित किये। जिसके फलस्वरूप उपरोक्त दोनों मुनिराजोंने आपको पंन्यासपद से सम्मानित करने का मन में दृढ निश्चय कर लिया। साथ ही इस सम्बन्धी सभी साधुवर्ग से वार्तालाप कर पंन्यासजी श्री उम्मेदविजयजी के पास जाकर सबने अपनी इच्छा प्रकट की । पंन्यासजी तो उन्हें जानते ही थे और कई दिनों से विचार भी कर रहे थे । aa और भी समर्थन मिलने पर अक्षयतृतीया के शुभ दिन को - जिस दिन सभी वरसतिप कर्त्ता तपस्वी गण पारणा करते है, निकल कर यह शुभ समाचार प्रसारित कर दिया ।
पन्यासजी महाराज की अध्यक्षता में तैयारियाँ होने लगी । सभी स्थानों पर हर्ष मनाया जाना नजर आने लगा । पूजा प्रभावना की धूम मचने लगी । समय समय का काम करता ही रहता है । आखिर संवत् १९३३ के वैशाख शुक्ला तृतीया के दिन श्री उम्मेदविजयजी महाराजने श्री हितवि जयजी को पंन्यास पद से अलंकृत कर उन्हें पंन्यास हितविजयजी के नाम से प्रसिद्ध किये । उस समय जनता की उपस्थिति बहुत सुन्दर थी, जिस में भी श्रमण समुदाय की संख्या काफी और दर्शनीय थी । जयध्वनि से मण्डप गूंज उठा । प्रभावना के साथ जनता स्वस्वस्थान चली गई ।
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