Book Title: Tattvavetta
Author(s): Pukhraj Sharma
Publisher: Hit Satka Gyanmandir

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Page 34
________________ : २२: तत्त्ववेत्ता ___ उस समय पंन्यास पदवी की बहुत बड़ी महत्ता थी। इने गिने ही पंन्यास दृष्टिगोचर होते थे। वह भी बडे धुरन्धर और क्रियाकुशल थे । काम कर दिखाने की ताकात रखते थे । आज कल के जैसे पदवी के भूखे नहीं थे । केवल पदवीयों के पीछे पडे हुए अपने कर्तव्य को भी भूल बैठते है। और दोचार भक्तों द्वारा पदवी पाकर कृत्यकृत्य हो जाते है और जीवन की सफलता मान लेते है । दरअसल उन्हें पूछा जाय तो अपना नाम भी शुद्ध बोलना और लिखना नहीं जानते । यह है आजकल के पदवीधारी ! खैर ! ठीक है ! निर्नाथ जैन समाज में सब पदवीधारी बन जाय तो आशा है कि जल्दी उद्धार हो जायगा ? तीर्थयात्रा, विहार, चौमासा, शास्त्रार्थ, __ प्रतिष्ठा, ज्ञानमंदिर दीक्षा आदि का विशेष विवरण पालांताणा में कुछ समय बिराजने के पश्चात् अब आपने विहार आरम्भ किया । अब आपके साथ सौभाग्य. विजयजी और प्रमोदविजयजी नामक दो साधु ओर विद्याभ्यास के निमित्त साथ हो गये । इस तरह अपने शिष्य चतुरविजय सहित ४ ठाणा से विहार करते करते सिहोर नामक नगर में पहुंचे । वहाँ एक धनुभाई नामक श्रावक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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