Book Title: Tattvavetta
Author(s): Pukhraj Sharma
Publisher: Hit Satka Gyanmandir

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Page 36
________________ :२४: तत्त्ववेत्ता खामियों को आपने अपने उपदेशों द्वारा निकालने का प्रयत्न किया। ___ यह तीर्थ अति प्राचीन है। यहां पर जैन धर्म के अलावा अन्य-धर्मावलम्बियों के भी देवस्थान विद्यमान है। आपने उन्हें भी विना किसी भेदभाव से देखा और वहां भी होनेवाले नियम विरुद्ध कार्यों को रुकवाने का प्रयत्न किया । इस कठिन एवं पावन तीथे पर आपने धर्म का खूब प्रचार किया । बाद में आप कुछ दिन जूनागढ में भी बिराजें। जैसाकि पहले लिखा जा चूका है कि जूनागढ मूसलमानों के अधिकार में था, अतः वहां विधर्मियों का बहुत जोर था, हिंसा की बोलबाला था । सरे बजार मांस-मदिरा विकते थे। यह देख आप से न रहा गया। अतः इसके विरुद्ध आपने दो तीन वार सार्वजनिक धर्मोपदेश भी दिये । आपके भाषणों का कुछ असर तो पडा, पर वहाँ तो कई समय से ऐसा ही वातावरण था, अतः यहाँ स्थायी रहने की आवश्यक्ता हुई, पर समय का अभाव व वहां का जलवागू अनुकूल न होने से आपको शीघ्र ही विहार करना पड़ा। ग्रामोंग्राम विहार कर आप पुनः गुजरात में पधारें। कुछ मास गुजरात का भ्रमण कर आपकी इच्छा मरुधर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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