________________
: ४ :
वववेत्ता
हितविजयजी जो कि चरित्रनायक आपके पट्टपरम्परा में १३ ( तेरह ) वें पट्टधर शिष्य थे । सच है रत्नों की खान से तो रत्न ही निकलते हैं ।
आपका जन्म मारवाड ( राजस्थान ) के सुप्रसिद्ध मेडता शहर में संवत् १८९९ के कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा जैसे पवित्र दिन में हुआ था। आप जाति के पुष्करणा त्राह्मण थे | आपके पिताका नाम अखेचंदजी (अक्षय चंद्र) और माता का नाम लक्ष्मीबाई था । आप दो भाई थे । जिनमें आप बडे थे । आपका नाम हीराचंद और छोटे भाई का नाम बालचंद था। आप वास्तव में आगे जाकर सच्चे हीरे के रूप में संसार के समक्ष चमके । नाव को खेनेवाला केवट स्वयं की रक्षा का ध्यान न रखकर नाव में बैठे हुए यात्रियों का अधिक ध्यान रखता है । इसी प्रकार हीराचंदजीने भी केवल अपने नामको ही सार्थक न बनाकर अपने पिता अखेचंदजी के नामको वास्तव में अक्षयचंद बना ही दिया । जो कि वहीं चंद्र अभी तक अपनी ज्योति संसार के समक्ष चमका रहा है।
आपका बाल्यकाल बडे लालनपालन से बीता । कुछ बडे होने के बाद आपकी प्राथमिक शिक्षा प्रारम्भ की गई । उस समय पाठशाला का उचित प्रबन्ध न होने से आपकी शिक्षा पोशाल (व्यक्तिगत पाठशाला) में ही हुई । पिता की
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com