Book Title: Tattvavetta
Author(s): Pukhraj Sharma
Publisher: Hit Satka Gyanmandir

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Page 26
________________ तत्त्ववेत्ता को व्याख्यान आदि धर्मोपदेश देने का भी अवसर देते । उस समय श्रोताओं की अपार भीड लग जाती । आपकी व्याख्यान शैली तो एक अनोखे ढंग की थी । प्रत्येक श्रोता व्याख्यान में तल्लीन हो जाता और उसकी इच्छा यही रहती कि व्याख्यान का अन्त न हो तो अच्छा है । इस प्रकार की उन्नति देख पंन्यासजी महाराज भी बडे मन ही मन प्रसन्न होते और अपने शिष्य को और भी अधिक योग्य बनाने का निश्चय किया। इस प्रकार अमदावाद में ही आपका विद्याभ्यास लगातार सं. १९१४ से १९२४ दश वर्षे पर्यन्त चालु रहा। योग और गुरुदेव का स्वर्ग आपकी इस अथाग परिश्रमता और योग्यता को देखकर उस समय स्थित साधु समुदाय ने श्री पंन्यासजी महाराज को यह सुझाव दिया की अब श्री हितविजयजी को बडे योग करवा के गणिपद से अलंकृत कर दीजिये। इस सुन्दर सुझाव का पंन्यासजी महाराजने भी हार्दिक स्वागत किया। ____शुभ दिन व उचित समय देखकर हितविजयजी को योग में प्रवेश करवा दिया। नित्य प्रति योग की क्रियायें होने के साथ साथ कठिन तपस्या भी होने लगी। पर इस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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