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आगम अध्ययन
करवा दीजिये । हम इनके वास्ते विद्याभ्यास सम्बन्धी प्रत्येक सुविधा कर देगें। अँधा क्या चाहता है ? केवल दो आँखें ! पंन्यासजी भी तो यही चाहते थे कि मेरा शिष्य खूब विद्या पढ़ें । और फिर संघ की ऐसी सहायता से तो सोने में सुगंधवाली बात हो गई । आपने शीघ्र ही विशेष रूप से हितविजयजी का विद्याभ्यास प्रारम्भ कर दिया ।
बालमुनि श्री हितविजयजी अपने गुरुदेवकी आज्ञानुसार बडी लग्न से आगम ग्रन्थों का अध्ययन करने लगे । उन्हें इस कार्य में बड़ा ही आनंद आने लगा । विद्यार्थी की बढ़ती हुई रूचि से शिक्षक को भी आनन्द अनुभव होने लगता है, अतः आपके शिक्षक रूप में पू. श्री जवेरसागरजी महाराज जो कि आप को आगम ग्रन्थ पढा रहे थे। उन्हें भी शिक्षार्थी की रुचि पर बडा आनन्द आया। हितविजयजी की तीव्र बुद्धि पर तो बडा ही आश्चर्य होता था, जो भी उन्हें पढाते दूसरे दिन तो वह पाठ तैयार ही मिलता । शायद ही ऐसा कभी अवसर मिला हो कि शिक्षार्थी ने अपना पाठ अपूर्ण छोडा हो। ____अब तो आपको दीक्षा लिए भी काफी समय हो गया। साधु के क्रियाकलाप में तो आप पूर्ण दक्ष हो गये । कभी कभी पूज्य पंन्यासजी महाराज श्री हितविजयजी महाराजः
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