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दीक्षा की तैय्यारी
: ११ : ___दीक्षा की तैय्यारी __ अखेचंदजी के प्रस्थान के कुछ समय बाद पूज्य पंन्यासजी महाराजने हीराचंदजी को दीक्षा देने का विचार श्रीसंघ के समक्ष प्रगट कीया। श्रीसंघने पंन्यासजी महाराज की आज्ञा शिरोधार्य की, और शुभ मुहूर्त निश्चित होने पर श्री संघने दीक्षा की शानदार तैय्यारी करना प्रारम्भ की। श्री संघने बडी ही श्रद्धा एवं भक्ति और उत्साह से इस शुभ उत्सव को सफल बनाने का भरचक प्रयत्न कीया । और अन्तमें उनका परिश्रम वास्तव में सफल रहा।
शुभ संवत् १९१३ के मार्गशीर्ष की पूर्णिमा जैसे पवित्र दिन के शुभ मुहूर्त में हीराचंद को उदयपुर के सुप्रसिद्ध चौगान के मंदिर के पासवाले सिद्धवट वृक्ष के नाचे उदयपुर के हजारों नगरनिवासीयों तथा श्रीसंघ के समक्ष पंन्यासजी श्री चन्द्रविजयजी महाराजने दीक्षा दी। दीक्षा का उत्सव प्रशंसनीय था । उस दिन से हीराचंद का नाम “हितविजय" नामक साधु के रूप में परिवर्तन होगया। और जनता उनके सामने नत मस्तक होने लगी। उसी दिन से वे गृहस्थियों के गुरु रूप में तथा धर्म के पथ-प्रदर्शक के रूप में गिने जाने लगे।
शनैः शनैः हितविजयजी महाराजने अपना अध्ययन और
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