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गुरुदेव को मेट
इस प्रकार पंन्यासजी महाराज के उपदेशों का असर अखेचंदजी पर गहरा पडा । आखिर वे भी तो मानव ही ठहरे न ? दूसरी और अपने आपसी-प्रेम के वशीभूत हो उनकी नेक सलाह का सत्कार करना ही पडा।
शुभ कार्य में हमेशां विलम्ब और बाधायें आया ही करती है पर चतुर नर अपनी चातुरी के द्वारा उनसे बच निकलते है । "मुबह का भूला-भटका शाम को घर आजाय तो भूला नही कहा जाता," अखेचंदजी प्रथम
तो बडे ही दुःखी हुए थे, पर अन्त में उन्होंने खूब सोच• समझकर पूज्य पंन्यासजी महाराज को भेट देने की स्वीकृति दे ही दी।
दूसरे दिन प्रातः व्याख्यान के समय पूज्य पंन्यासजी महाराजने श्री उदयपुर श्रीसंघ के समक्ष प्रकट रूप से पुनः हीराचंद की मांग की, और अखेचंदजीने बडी प्रसन्नतापूर्वक खडे होकर श्री संघ के समक्ष पूज्य पंन्यासजी श्री चन्द्रविजयजी को हीराचंद बहोरा दिया। इस शुभ कार्य का प्रभाव उदयपुर जैन संघ के ऊपर ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण जनता पर गहरा पडा । स्थान स्थान पर गुरुभाक्त और त्याग की मुक्त कंठ से प्रशंसा होने लगी। शहर के लोग अखेचंदजी जैसे गुरुभक्त और त्यागी के दर्शन की भीड
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