Book Title: Tattvavetta
Author(s): Pukhraj Sharma
Publisher: Hit Satka Gyanmandir

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Page 19
________________ गुरुदेव को भेट : ७: व्याख्यान में दत्तचित्त हो जाता । यहां तक कि उसे व्याख्यान के समय अपने तन का भी ध्यान नहीं रहता। चांद बादलो में भी अपना अस्तित्व दिखाये विना नहीं रहता । और हीरा धूल में भी चमके विना नहीं रह सकता । ठीक वैसे ही हीराचंद का प्रभाव वहाँ के जन समुदाय पर अच्छा पडा । पंन्यासजी महाराज हाराचंद की प्रवृत्ति को रोज व्याख्यान के समय देखा करते थे। उसकी धर्मप्रवृत्ति पर वे मुग्ध हो गये । अतः वह उनकी आंखो में समा ही गया। उन्हें यह निश्चय हो गया कि यह बालक भविष्य में एक हीरे की तरह अवश्य चमकेगा । अतः यथासम्भव इस हीरे को हाथ से खोना न चाहिये, यह बात पंन्यासजी के हृदय में पूर्णरूपेण समा गई। एक दिन मौका देख कर मुनिराजने अखेचंदजी को अपने मन की बात कह ही दी। उन्होंने प्रेमपूर्वक उन से याचना की कि 'हीराचंद' को मुझे दे दो। मैं इसे संसार के समक्ष उदाहरणरूप में प्रस्तुत करुंगा । तुम भी ऐसे सुअवसर को न जाने दो और मेरी इस याचना पर विचार कर हीराचंद के भविष्य को उज्वल बनाने में पूरा सहयोग दो । आशा है आप मेरी याचना को अवश्य ही स्वीकार कर त्याग का एक अद्भूत उदाहरण उपस्थित करोगें। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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