Book Title: Tattvavetta
Author(s): Pukhraj Sharma
Publisher: Hit Satka Gyanmandir

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Page 17
________________ परिचय और जन्म स्थिति साधारण होने से आप विद्याभ्यास अधिक न कर सकें। अतः पोशाल की शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् आप अपने पिता के पास ही ज्योतिष, गणितशास्त्र, पूजा पाठ और कर्मकांड का अभ्यास करने लगे। साथ साथ पिताजी के निजी कार्य में भी हाथ बटाने लगे । जिस समय आपने पोशाल की विद्या समाप्त की, उस समय आपकी आयु केवल १० वर्ष की थी । १२ वर्ष की आयू में तो आप गृहस्थ धर्म के अच्छे जानकार हो गये और अपने पिता के पूजा-पाठ के काम को पूर्ण संभाल लिया । ब्राह्मण होने के नाते आपके पिता की आजीविका का यही एक मात्र साधन था । पूजापाठ के साथ साथ ज्योतिषशास्त्र में भी कुशल हो गये। पुत्र को अल्पायू में ही इस प्रकार बढा-चढा देख श्री अखेचंदजी तथा लक्ष्मीबाई दोनों ही बडे प्रसन्न होते थे । घर के तो क्या गांववाले भी बालक की चातुरी पर मुग्ध थे । प्रत्येक व्यक्ति दांतो तले अंगूली दबाकर यही कहता था कि इस छोटी आयू में ही बालक कितना कुशल होगया ? रेत में से ही रत्न निकलते है । किसीने सच ही तो कहा है कि " पूतरा पग पालने दिसे" वास्तव में यही कहावत आगे जा चरितार्थ हुई। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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