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तत्त्ववेचा
गुरुदेव को भेट बाल्यावस्था में ही आप एक बार अपने पूज्य पिताश्री अखेचंदजी के साथ अपने नीजी कार्य के लिये उदयपुर गये । वहां जाने पर अखेचदजी को ज्ञात हुआ कि यहां पर पूज्य पंन्यासजी श्री चन्द्रविजयजी महाराज बिराज रहे है। श्री चंद्रविजयजी महाराज जन्म से अखेचंदजी की जाति के अर्थात् पुष्करणा ब्राह्मण थे । जोधपुर के निवासी और अखेचंदजी के गृहस्थ धर्म के नाते निकटस्थ सम्बन्धी भी थे । बचपन से ही दोनों में बड़ा प्रेम था, अतः आप को यह मालूम होते ही आप अपने पुत्र हीराचंद को सायले पंन्यासजी महाराज से मिलने गये । वहाँ पहुंचकर पिता पुत्रने श्री पंन्यासजी को बडी श्रद्धा से वंदना की । सुखसाता पूछने के पश्चात् अखेचंदजीने अपने पुत्र का पंन्यासजी महाराज को परिचय कराया । पंन्यासजी भी उन्हें देख बडे प्रसन्न हुए। साथ ही उन्हें जहाँ तक उदयपुर रहें वहाँ तक सदा ही व्याख्यान में आने का आदेश भी दिया।
__ अखेचंदजी पूज्य पंन्यासजी की आज्ञानुसार सदा ही व्याख्यान में जाने लगे । व्याख्यान सुनने का शौक हीराचंद को भी बढा । वह कभी भी व्याख्यान समय को न गुमाता । जब व्याख्यान चलता उस समय हीराचंद
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