Book Title: Tattvavetta
Author(s): Pukhraj Sharma
Publisher: Hit Satka Gyanmandir

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Page 22
________________ : १० : तत्ववेत्ता बडा ही आदर लगाने लगे। जहां भी वे जाते उनका सत्कार होने लगता । धन्य धन्य शब्द गूंजने लगते । जो वास्तव में उचित भी थे । माता की उदासीनता कुछ दिन और ठहर कर अखेचंदजीने उदयपुर से बिदा ली | पंन्यासजी महाराज से मांगलिक सुन उन्होंने वहाँसे प्रस्थान किया । बडे आनंद और हर्ष के साथ आप मेडता आये । घर में प्रवेश करते ही घरवाली लक्ष्मीबाई अर्थात् हीराचंद की माताने हीराचंद को न देख पति से हीराचंद के लिये प्रश्न किया । उत्तर में अखेचंदने सारी कहानी कह सुनाई । स्त्रीजाति के स्वभाव के नाते उन्हें पुत्र का बिछुडना बहुत अखरा । कुछ रोई पीटी भी और उदासीन रहने लगी । अखेचंदजीने उसे तरह तरह से समझाई । अन्त में उसे भी शासनदेव की कृपा से सद्बुद्धि आई और अपने पति के द्वारा किये गये कार्य की स्वयं प्रशंसा करने लगी । धन्य है ऐसी सौभाग्यशाली माता को तथा पतिव्रता पत्नी को कि जिसने पति के द्वारा ऐसे कठिन कार्य किये जाने पर भी सहन कर एक सच्चा उदाहरण स्त्रीजाति के समक्ष रखा । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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