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तत्त्ववेत्ता
रूपरेखा संसारचक्र अनादिकाल से ही चला आ रहा है । इस चक्र की तीक्ष्ण धारों के असंख्य मानव, पशु, पक्षी आदि ग्रास बन गये । जिनका कि आज इस संसार के समक्ष नामो निशान तक न रहा।
प्रत्येक प्राणी का जन्म मरण के हेतु ही होता है। पर जीवन उनका ही सार्थक है जिन्होंने कि अपने जीवन को
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