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दो चार शब्द
ऐसे तो अर्वाचीनों की जीवनी असंख्यात दृष्टिगोचर होती ही है, पर प्रस्तुत जीवनी का अध्ययन व मनन से जितना अगाध गूढतम विषयों का अनुभव होना सम्भव है, उतना शायद ही दूसरी जीवनी की पर्यालोचना से सम्भव हो । महामना पंन्यास श्री हितविजयजी महाराज साहब एक अलौकिक व्यक्तियों में से एक थे । आपके पवित्र विशाल हृदय में जितनी दयालुता, गम्भीरता, व उदारता थी । उसका अनेकों उल्लेख किया जाय तो भी अल्प ही मानना पडेगा । आपका अमूल्य समय ज्ञानाभ्यास के साथ योगाभ्यास में ही सार्थक हुआ है । आपने योगदर्शन आदि शास्त्रों का अध्ययन ही नहीं बल्कि तत्तद् विषयों का मननपूर्वक सच्चे परिणामों को पाकर महान् आदर्श पथ को दर्शाया है । आप की जैनागमरहस्यवेदिता तो ऐसी ही थी कि - आपश्री के करकमलों द्वारा दीक्षा पा परम विभूति के प्रसाद से सुप्रसिद्ध सागरानन्दसूरीश्वरजी महाराज जैनागमों का उद्धारपूर्वक पूज्यश्री का सार्वदिक आभारी रहे है । आपकी जीवन - घटना को पढ़
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