Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4 Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri View full book textPage 8
________________ (२) श्रद्धेय पंडितजी न्यायशास्त्र के निष्णात विद्वान् है । अतः लोकवार्तिक जैसे दुबह और गंमीर ग्रंथकी टीकाके अधिकारी आप जैसे नैयायिक विद्वान् ही हो सकते थे। ग्रन्थकी मूळ पक्तियां पढते समय प्रथम क्षण जो कठिनाई प्रतीत होती है, टोका पढने के बाद दूसरे ही क्षणमें वह कठिनाई. सरलतामें परिणत हो जाती है, यही इस टीकाकी विशेषता है। . अनेक स्थलोंको पढकर तो हमें ऐसा लगा जैसे पंडितजीने साक्षात महर्षि विद्यानंदिके पाद. मूलमें ही बैठकर इस ग्रंथका अध्ययन किया होय । जैन साहित्य जगत् में यदि इस युगकी किन्ही रचनाओंको महत्त्व दिया जा सकता है तो वे दो ही है। एक धवलादि ग्रंथोंकी टीका, दूसरे तत्त्वार्थश्लोकवार्तिककी हिंदी टीका । पहिलीको जहाँ अनेक विद्वानोंने मिळकर सम्पादन किया है, वहां दूसरीको न्यायाचार्य पण्डित माणिकचंद्रजीने स्वतः बकेकेने ही किया है। बीसवीं सदीके जैन इतिहासको गतिशील बनानेमें निःसंदेह पंडितजीने महत्वपूर्ण कार्य किया है। बाजके संपादन जगत्को जितनी साहित्यिक सुविधायें प्राप्त हैं, उतनी सम्भवतः तब नहीं थी, जब कि पंडितजीने इस टोकाको प्रारम्भ किया था। फिर भी पंडितजीने बानी बौदिक महामताके वाधारपर इतने विशाळ गहन और उच्चतम ग्रंथको सरल बनाकर जो सर्व साधारणके लिये उपयोगी बना दिया है, वह विद्वानोंके लिये ईर्षाको चीज है। पंडितजीकी इस साहित्य सेवाके लिये मावी पीढी सदा उनका उपकार मानती रहेगी। श्री श्लोकवार्तिककी टीकाके लिये जैनदर्शन, न्याय, सिद्धांत, में निष्णात स्नातक विद्वान् की अपेक्षा थी, साथ ही अन्य दर्शनों या व्याकरण साहिमकी तकस्पर्शिनी विद्वत्ता मी बाकांक्षणीय थी। तभी पंडितजीने अमिमनीषियसे भृत निरवध हिंदी टीकाकी रचना की है। विद्वद्वर्यजी और हिंदी भाष्यकी जितनी भी प्रशंसा की जाय स्वल्प ही होगी। हिन्दी भाष्यमें शतशः नितान्त कठिन स्थलोंपर भावार्थ, युक्तियां, उदाहरण, देकर तो गेहको मोम बना दिया गया है। रूक्ष विषय न्यायको इतना स्पष्ट, रुचिकर, सुबोध्य, बनाने में भारी विद्वता, तपस्या, परिश्रमशीलता, अन्वेषणपूर्वक कार्य संपन्न किया गया है। ऐसे प्रकरणोंका अध्ययन कर विद्वानकी तीक्ष्ण मन्तःप्रवेशिनी विद्वत्तापर विस्मय करते हुये चित्त आनन्दगद्गद हो जाता है । पंडितजीने इस ग्रंथमें अपने गंभीर अध्ययन, असाधारण ज्ञान, अथक परिश्रम, तथा अपूर्वप्रतिभाका जो उपयोग किया है, उसके लिए हम पंडितजीका अभिनन्दन करते हैं। मैं टीकाका अध्ययन कर अत्यन्त प्रभावित हुआ हूं । जैन समाजसे निवेदन है कि घोरश्रम, परिपक्वविद्वत्त से भरपूर इस अनुपम ग्रन्थका परिशीलन करें और महान् नैयायिक भाचार्य श्री विद्यानन्द स्वामीकी तर्कपूर्ण सिद्धान्तप्रतिपादनपद्धतिका आनन्दानुभव करते हुए स्वकीय सम्यग्ज्ञानको परिष्कृत करें।Page Navigation
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