Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri

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Page 7
________________ संपादकीय वक्तव्य आज हम हमारे स्वाध्याय प्रेमी पाठकोंके करकमलोमें श्लोकवार्तिकके चौथे खंडको दे रहे हैं, इसका हमे हर्ष है । यद्यपि इस खंड के प्रकाशनमे अपेक्षासे अधिक विलंब हो गया है। परन्तु हमारे धर्मप्रेमी सदस्य हमारी विवशताके लिए क्षमा करेंगे ऐसी आशा है । , हमें इस पातका हर्ष है कि ग्रंथमालाने इस महान कार्यको संपादन करनेमें मारी धैर्यका कार्य किया है । उसमें हमारे स्वाध्यायप्रेमी सदस्यों के उत्साहकी प्रेरणा है। हमारी इस योजनाका सर्वत्र स्वागत हो रहा है। हमारे सदस्योंको तो हमारे इस बहुमूल्य प्रकाशनका लाभ हो ही रहा है। परन्तु जो इतर जिज्ञासु हैं, जैनदर्शनके तत्वोंके अंतस्तलस्पर्श मूक्ष्म विवेचनका अध्ययन करना चाहते हैं उनके लिए आज यह प्रकाशन बहुत महत्वका स्थान रखता है। इस ग्रंथके स्वाध्यायसे बडे २ सिद्धान्तवेत्ता विद्वान् प्रभावित हुए हैं। निम्नलिखित जैन समाजके कतिपय प्रसिद्ध विद्वानोंकी सम्मतिसे हमारे पाठक समझ सकेंगे कि इस ग्रंथसे स्वाध्यायप्रेमियोका कितना हित हुआ है । वे सम्मतियां इस प्रकार हैं। सिद्धान्तवाचस्पति स्याद्वादवारिधि श्री पं. वंशीधरजी न्यायालंकार इन्दौर श्री तत्वार्थ श्लोकवार्तिक हिन्दी भाष्यके छपे हुए तीनों खण्डोंको में श्रीमान् सर सेठ हुकुमचंदजी के सानिध्य में रह पढ़ चुका हूं। इसपरसे इतना अवश्य कहा जा सकता है कि दार्शनिक एवं सैद्धांतिक तत्वार्थीका विशद विस्तृत वर्णन करनेवाले संस्कृत तस्वार्थश्लोकवार्तिक जैसे महान् ग्रंथका हिंदी भाषा अनुवाद करनेका कार्य बडी विद्वत्ता एवं दृढसाहस एवं धैर्यका काम था। __इसको श्रीमान् पंडित माणिकचन्द्रजी न्यायाचार्यने अपने अनुपम तथोक गुणोंके कारण पूर्ण कर डाला है। इससे पंडितजी अवश्य वर्तमान युगीन जैन समाजमें एक महान् दार्शनिक विद्वान् कहे जाने के पूर्ण अधिकारी हैं। दर्शनशास्त्र, सिद्धान्त, न्याय, व्याकरण, साहित्यकी निमृतविद्वत्तासे ही न्यायाचार्यजीने यह कार्य संपन्न किया है। युक्ति और उदाहरणों द्वारा कठिन प्रमेयोंको सरळ सुबोध्य, बना दिया है । प्रतिभाशाली विद्वानजीका यह कार्य बड़ा प्रशंसनीय हुआ है। इसके लिए हिन्दी टीकाकार मान्य पंडितजीको भनेक हार्दिक धन्यबाद समर्पित हैं। ... श्री लालबहादुरजी शास्त्री न्यायतीर्थ इन्दौर अनेकपदालंकृत श्रीमान सा सेठ हुकमचंद्र साहबकी स्वाध्यायगोष्ठी में अनेकोपाधिविभूषित न्यायाचार्य पं. माणिकचंद्रजी द्वारा रचित तत्त्वार्यश्लोकवार्तिककी हिंदी टोकाके कुछ प्रकरण देखनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ। टीका वस्तुतः अपने आपमें बड़ी विशद और विद्वत्तापूर्ण है।

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