________________
तत्त्वार्थवार्तिक- हिन्दी-सार
[ ५१४२
३१-३. धर्मादि द्रव्योंका अपने निज स्वभावरूपसे होना परिणाम है । प्रत्येक द्रव्यके निजस्वरूप पहिले बताये जा चुके हैं। परिणाम दो प्रकारका है - एक अनादि और दूसरा आदिमान् । धर्मादि द्रव्योंके गत्युपग्रह आदि परिणाम अनादि हैं, जबसे ये द्रव्य हैं तभी से उनके ये परिणाम हैं। धर्मादि पहिले और गत्युपग्रहादि बादमें किसी समय हुए हों ऐसा नहीं है । प्रत्ययों के आधीन उत्पाद आदि धर्मादिद्रव्योंके आदिमान् परिणाम हैं।
७०४
१४. कोई धर्म अधर्म आकाश और काल में अनादि परिणाम और जीव तथा पुद्गल में आदिमान् परिणाम कहते हैं। उनका कथन ठीक नहीं हैं; क्योंकि सभी द्रव्योंको द्वयात्मक मानने से ही उनमें सत्त्व हो सकता है अन्यथा नित्य अभावका प्रसंग होगा । द्रव्यार्थिक और और पर्यायार्थिक दोनों नयोंकी विवक्षासे धर्मादि सभी द्रव्यों में अनादि और आदिमान दोनों प्रकार के परिणाम वनते हैं । यह विशेषता है कि धर्मादि चार अतीन्द्रिय द्रव्योंका अनादि और आदिमान् परिणाम आगमसे जाना जाता है और जीव तथा पुद्गलोंका कथश्चित् प्रत्यक्ष गम्य भी होता है ।
पाँचवाँ अध्याय समाप्त