Book Title: Tattvarth Varttikam Part 02
Author(s): Akalankadev, Mahendrakumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 414
________________ ८२६ उपपादस्थान २।३१२/१४३९/४७ उपभोग २४:८|१३ उपभोगपरिभोगानर्थक्य ७ ३२ ७/२१ उपभोग (परिमाण) उपयोग उपशमक उपशान्तमोह उपस्थापन उपाध्याय उभयस्थ उष्ण ऊर्ध्व ऋजुमति जसूत्र - व्यतिक्रम एकाश्रय एरण्डबीजवत् एषणा ऊ एकक्षेत्रावगाहस्थित एकजीव एकत्व ( अनुप्रेक्षा ) एकत्ववितर्क एकद्रव्य एकपल्योपमस्थिति एकप्रदेशादि एकयोग एकाग्रचिन्तनिरोध ऐरावत देशान औदयिक ओदारिक ए कन्दर्प २८ २ १८ ९ २४५ ९/४५ ९।२२ ९.२४ ६।११ ९/९ ४१३२, २०१५ ७/३० औ १/२३ १।३३ ટાર૪ ५१८ ९/७ ९/३९ ५/६ ३।२९ ५।१४ ९/४० ९/२७ ९/४१ १०/७ ९.५ ऐ २१०३।२७:२।३७ ४१९४१२९ २।१ २।२६ औपपादिक २/४६ २/५३,४/२७ औपशमिक औपशमिकादि २।१ १०/३ vje कर्मभूमि कर्मयोग कर्मयोग्य तस्वार्थवार्तिके कल्प अल्पातीत करूपोपपन्न कषाय ४/३४/१७ २२६६१५६१८६ ८१६८९ कषाय ( वेदनीय) ( षोडश) ८१९ कषायोदय ६।१४ ७/२३ ४१९ ७/२८ काङ्क्षा कापिष्ठ कामतीत्राभिनिवेश -फ्रेश - प्रवीचार योग -स्वभाव काय कारित कारुण्य कार्मण काव्यविक्रम किम्पुरुष किन्नर किंविधिक कीर्ति कुप्य 酵 कुलालचक्र कुशील कूटलेख किया ३/३७ २/२५ દ્વાર ४|२३ ४|१७ कृत कृत्स्न कृत्स्नकर्मविप्रमोक्ष कृमि केवल काळ ११८: ५।२२५/२९:१०/९ - विभाग ५११६१२ -ज्ञान - दर्शन ९/४० ७/१२ ६।८ ७/१२ २/३६ ९/१९ क्षुत् ४/७ क्षेत्र ४|१४ ७/३६ ४|११ ४/११ ४|४ ३।१९ ७/२९ રાજ १०/७ ९/४६ ७/२६ ६/८ ५/१३ *** २।२३ |१|१९३१/२९८/६० ८७ १०११ १०/४ १०/४ केवलिन् केशरिन् कोटिकोटि कौत्कुच्य क्रिया किश्यमान कोष क्षपक क्षयोपशमनिमित्त क्षान्ति क्षायिक क्षिप्र क्षीणमोह गङ्गा - प्रत्याख्यान गण गति - वृद्धि मत्युपग्रह मन्ध गन्धर्व सिन्ध्यादि ग -साम्य -वत् ६/१३; ९/३८ २११४ ८|१४ ७/३२ ५/२२, ६५ सन्धवत् गर्दतोय गर्भ गर्भसम्मूर्च्छन ज गुण ७/१२ ८९ ११८: १२५३३११०३ ७/२९:१०१९ ७/३० ७/५ ९४४ શાર ધાર २१ २०१६ ९/४५ ९९ २२० રા ९/२४ २२६:२२६४/२१; ८२१,१०१९ ५/१७ २२०८/११ જાર ५/२३ ४/२५ २/३१,२।२२ રાજ ५/४१ ५/३५ ५।३८ गुणाधिक ७/११ गुसि ९२२ ९२४ गोत्र ८२४८११६८११९३८/२५ ग्रह वैवेयक ४/१९४१२२४/१२ ग्लान ४|१२ ९/२४

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