Book Title: Tattvarth Varttikam Part 02
Author(s): Akalankadev, Mahendrakumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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८१
शीत
४१२२
७.२१
, तत्वार्थसूत्रस्थसवाणामकारादिकोशः वाक (कर्म) ६१ | विहायोगति ११ | शर्कराप्रभा
३२१ वाग्गुप्ति ७४ | वीचार ९।४४ शिखरिन्
३१११ वाचना ९१२५ | वीतराग
९४१०
२।३२,९४९ बात ३११ वीर्य २१४८/१३ शील
७/२४ कुमार ४९. -विशेष
शीलवतानतिचार
६।२४ वायु २१३ वृत्त
शुक्र वास्तु
२१ वृत्तिपरिसथान - ९१९ शुक्ल (ध्यान) ९/२८,९३० विकल्प ८1९९४७ वृद्धि
३२२७
शुक्ललेश्या बिक्रिया
पृष्येष्टरस (त्याग) ७७ शुभ २१४९,६।३,६।२३८।११ ६४२७ वेदना
३॥३९॥३२ शुभनामा
३७ विग्रहगति स२५,२१२८ | वेदनीय ८४८1१८,९४१६
शुभायु
८/२५ बिचिकित्सा वैक्रियिक २।३६२।४६
शून्यागारवास
७६ विजय - ४११९ | वैजयन्त
४।१९
शेष १।२२,२।३५,२।५२३।२२, बिब्यादि ४।२६१२ वैडूर्यमय
२१२
४९८४१२२,४२७४२८ बितर्फ
९४३ वैमानिक ४१६
८१२०९।१६ विदेह ३१३१२३७ वैयावृत्त्यकरण
६।२४ शैक्ष्य
९।२४ विदेहवर्ष ११० वैवावृत्त्य (दश) ९/२०
शोक
६।११,८९ विदेहान्त
३१२५ वैराग्यार्थ
शौच
६।१२,९४६
७१२ विद्युत्कुमार ११.
९/४५ व्यञ्जन
भावक
१११८ विधान
३१९ १७ व्यञ्जनसंक्रान्ति ९/४४ विधिविशेष व्यन्तर ४१५:४।११४॥३८
भुत ११९,२०,२६,११३१ विनय (चतुर्भेद) ९।२०
२।२१,६।१३,८।६९।४३, व्यय ५/३०
९/४७ विनयसम्पन्नता ६।२४ व्यवहार
१२३३ विपरीत ६२३,९/३१
२११९
भोन व्युत्सर्ग
२२ विपर्यय
११३१,६।२६ व्युत्सर्ग (द्विभेद) ९२० विपाक
३२७ व्युपरतक्रियानिवर्ति
षट्समय
९/३९ -विचय ९/३६ व्रत
षविंशतिपञ्चयोजनशतविस्तार ७/
१ २४ विपुलमति
३।२४ ११२३ प्रतसम्पन्न
७२१ विप्रमोक्ष
१०२ प्रतिन्
७/१८ विप्रयोग
१५ ९/३.
सक्लिष्टासुरोदीरितदुःख अत्यनुकम्पा
६१२ विमोचितावास ७६
संयम
९/६९/४७ विरत ९।४५ शक्तितः तपस्
संयमासंयम २।५,६।२० विरुद्धराज्यातिक्रम ७/२८ शक्तितः त्याग
संयोग (विभेद) ६।९
६।२४ विविक्तशय्यासन
६१८ ९१९
२३ शङ्का
संरम्भ विवेक
शतार ९४२२
११४९१९/
४|१९ संबर विशुद्ध
२०४९ शब्द . ११३३२।२०५।२४ | संवृत्त
૨૨૨ विशुद्धि
शब्दानुपात १।२४३१२५
६१२४
७.३१ विषय
१२२५ शब्दप्रवीचार
संवेगार्थ
७/१२ -संरक्षण ९।३५
९/९ संसार विष्कम्भ २।१२ | शरीर
२।३६४।२१, | संसारिन् २।१०२।१२,२।२८ विसंवादन
५।१९८।११ । संस्थान ५।२४।८।११
श्री
८/२१
६२४
संवेग
४८
| शय्या
६।२२ ।

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