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६ । तट दो : प्रवाह एक
पना की। आइन्स्टीन ने सापेक्षवाद की स्थापना कर उसकी व्याख्या में परिवर्तन ला दिया। फिर भी आइन्स्टीन के गुरुत्वाकर्षण सम्बन्धी नियमों का प्रयोग जब नक्षत्रीय समस्याओं के समाधान के लिए किया जाता है, तब ठीक वही परिणाम निकलते हैं जो न्यूटन के नियमों के प्रयोग से निकलते हैं। भू-भ्रमण के बारे में अनेक मत हैं। बुद्धि के द्वारा उन्हें कोई निश्चित रूप नहीं दिया जा सका। बुद्धिवाद अपने युग में नया रूप लाता है और चमत्कार उत्पन्न करता है। चिरकाल के बाद वह बूढ़े आदमी की तरह जीर्ण हो जाता है। कोपरनिकस का भू-भ्रमण का सिद्धान्त एक दिन बहुमूल्य था किन्तु सापेक्षवाद की स्थापना के बाद अल्पमूल्य हो गया। लिओपोल्ड इन्फेल्ड के शब्दों में—'कोपरनिकस और टॉलमी के सिद्धान्त के विषय में निर्णय करना अब निरर्थक है। वास्तव में दोनों के सिद्धान्तों की विशेषता का अब कोई महत्त्व नहीं । पृथ्वी घूमती है और सूर्य स्थिर है या पृथ्वी स्थिर है और सूर्य घूमता है-इन दोनों का कोई अर्थ नहीं है। कोपरनिकस की महान् खोज आज केवल इतने ही वक्तव्य में समाने जितनी रह गई है कि कुछेक प्रसंगों में नक्षत्रों की गति का सम्बन्ध सूर्य के साथ जोड़ने की अपेक्षा पृथ्वी के साथ जोड़ना अधिक सुविधाजनक है।' ____ मतानैक्य और उत्तरवर्ती सिद्धान्त के द्वारा पूर्ववर्ती सिद्धान्त का निरसन-ये दोनों बुद्धिवाद की सहज अपूर्णताएं हैं। दर्शन वही है जहां मतैक्य हो, उत्तर के द्वारा पूर्व का समर्थन हो।
बुद्धिवाद अपूर्ण इसलिए होता है कि वह परोक्ष है। दर्शन प्रत्यक्ष होता है इसलिए वह पूर्ण है। बुद्धिवाद की उत्पत्ति इन्द्रिय और मन के जगत् में होती है जो स्वयं चैतन्यमय नहीं है बल्कि चैतन्य के वाहक हैं। दर्शन की उत्पत्ति आत्मिक जगत् में होती है जो स्वयं चैतन्यमय है।
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