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१० । तट दो : प्रवाह एक
गुण
कार्य इन्द्रिय-व्यापार १. पृथ्वी रिक्तस्थान जड़ता हड्डी, मांस, त्वचा, सूंघना
नाड़ी, रोम २. जल कम्पन शीतलता वीर्य, रक्त, मज्जा, स्वाद
मूत्र, लाल ३. तेजस् प्रसरण उष्णता क्षुधा, प्यास, नींद, देखना
जड़ता, आलस्य ४. वायु संकोचन सावधानता धावन, चलन, मोटन, स्पर्श करना
संकोच, प्रसारण ५. आकाश निरोध शान्ति राग, द्वेष, लज्जा, सुनना
भय, मोह, स्वर और तत्त्व १. चन्द्र-स्वर पृथ्वी : मानसिक धैर्य, उत्साह आदि की प्राप्ति । २. चन्द्र-स्वर जल : मित्र-प्रेम, सम्मान आदि की प्राप्ति । ३. चन्द्र-स्वर तेजस् : क्लेश-हानि आदि । ४. चन्द्र-स्वर वायु : क्लेश-हानि आदि । ५. चन्द्र-स्वर आकाश : शून्यता, आलस्य, प्रमाद । १. सूर्य-स्वर पृथ्वी : सुख-विनोद आदि की प्राप्ति । २. सूर्य-स्वर जल : विराग, विवेक, सन्तोष आदि । ३. सूर्य-स्वर तेजस् : उग आदि । ४. सूर्य-स्वर वायु : दु:ख, सन्ताप आदि। ५. सूर्य-स्वर आकाश : रोग, भय, शोक आदि । करणीय कार्य १. पृथ्वी तत्त्व में विचारप्रधान स्थिर कार्य । २. जल तत्त्व में चर कार्य। ३. तेजस् तत्त्व में बहुश्रमसाध्य कार्य । ४. वायु तत्त्व में क्रूरतापूर्ण कार्य । ५. आकाश तत्त्व में केवल तत्त्व विद्या का अभ्यास। . सौम्य कार्यों में चन्द्र-स्वर और पृथ्वी तत्त्व व्यवहृत किए जाते हैं; क्रूर
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