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कायोत्सर्ग साधना का अर्थ है अध्यवसान, (अचेतन) मन में निमग्न होना। उसकी अनेक कक्षाएं हैं।
पहली कक्षा हैकायोत्सर्ग--देह-विसर्जन या शिथिलीकरण का अभ्यास । दूसरी कक्षा है
आत्म-विश्लेषण की पद्धति द्वारा अचेतन, अर्धचेतन और चेतन भावनाओं का प्रकटीकरण । अवदमित सम्पर्कों, विचारों और आवेगों का प्रकटीकरण, परिवर्तन और शोधन ।
आत्म-विश्लेषण के तीन अंग हैं : १. आत्म-निरीक्षण, २. आलोचना, ३. प्रायश्चित्त । तीसरी कक्षा हैभावना—आत्मोन्मुखी प्रवृत्तियों का बार-बार अभ्यास । चौथी कक्षा हैध्यान-चित्त का एकाग्रीकरण या निरोध । पांचवीं कक्षा है-- स्वाध्याय, आत्मोन्मुखी चिन्तन-मननगत तन्मयता। छठी कक्षा हैप्रतिसंलीनता---इन्द्रियों को अन्तर्मुखी बनाना। सातवीं कक्षा हैयोगासन। आठवीं कक्षा हैसुखद सामुदायिक जीवन । इसके दो अंग हैं :
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