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१९१२ । तट दो : प्रवाह एक
से नासा छिद्रों को बन्द करें तथा शेष चारों अंगुलियां दोनों होंठों पर टिकाएं । वायु - ि
- विजय
मन में संकल्प-विकल्प उठते हैं, ये क्या हैं ? दबी हुई वासनाएं ही तो हैं । व्यक्ति के मस्तिष्क में करोड़ों सेल ( कोष) होते हैं। एक-एक सेल को विस्तार दिया जाए तो भारतवर्ष जितना भूभाग भर सकता है। एक-एक कोष में अनेक वासनाएं स्थित होती हैं । कल्पना करिए, उनका कितना बड़ा जाल है । यह तो स्थूल शरीर की बात है । सूक्ष्म शरीर में न जाने और कितनी वासनाएं दबी पड़ी हैं। एक-एक कर इन सबको मिटाने का प्रयत्न सफल हो सके, यह सम्भव नहीं । इसी बात को ध्यान में रखकर योगाचार्यों ने कहा—-वायु पर विजय प्राप्त करो, वासनाएं अपने-आप शान्त और क्रमशः क्षीण हो जाएंगी। वायु पांच प्रकार की होती हैं- प्राण, अपान, उदान, समान और व्यान । इनमें व्यान वायु के साथ मन का योग होने से संकल्प - विकल्प पैदा होते हैं । व्यान वायु पर विजय पाने अर्थात् उसके साथ मन का योन न होने देने से संकल्प - विकल्प अपने-आप शान्त हो जाते हैं । कण्ठ देश यानी विशुद्धि चक्र पर संयम करने से वायु-विजय होता है । संकल्प - विकल्प शान्त होते हैं ।
सुषुम्णा में श्वास
शरीर में तीन नाड़ियां प्रमुख हैं—इड़ा, पिंगला और सुषुम्णा । हमारा श्वास जब इड़ा और पिंगला में बहता है तब मन की चंचलता होती है । जब श्वास को सुषुम्णा में स्थापित कर दिया जाता है तब वह चंचलता मिट जाती है और उससे वासनाएं क्षीण होती हैं ।
जीभ
सबसे सुगम और सुन्दर उपाय है जीभ के अग्र भाग को शून्य में रखना । होंठों को दृढ़ता से बंद करने के बाद जीभ को अधर में रखें – ऊपर-नीचे, दाएं-बाएं स्पर्श न करें । *
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३१ जनवरी, १९६५ को साधु-साध्वियों के प्रणिधान कक्ष ( साधना शिविर) में दिए गए भाषण से ।
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