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११८ । तट दो : प्रवाह एक
दमन की परिभाषा शंकराचार्य ने बहुत ही मूलस्पर्शी की है। उनके मतानुसार :
विषयेभ्य :. परावर्त्य, स्थापनं स्वस्वगोलके ।
उभयेषामिन्द्रियाणां, स दमः परिकीर्तितः ।। इसका अर्थ है इन्द्रियों को विषयों से हटाकर अपने-अपने गोलक में स्थापित कर देना दम है ।
मैं अनुभव करता हूं कि दमन का मूल अर्थ समझने के पश्चात् अब मेरा मन आत्म-दमन का प्रयोग सुनकर आहत नहीं होता है। आत्म-दमन की प्रक्रिया मनोविज्ञान के प्रतिकूल है—इस मान्यता में भी मैंने संशोधन कर लिया है।
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