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जीवन-परिवर्तन की नयी दिशा । १२३
- अधिक बोलना, ज़ोर से बोलना, बिना प्रयोजन बोलना वाणी का असंयम है। अधिक बातें करना या मन की भाप को न रोक सकना मानसिक दुर्बलता है। ___पंक्तिबद्ध न बैठना और एकासन में न बैठना-आसन की अव्यवस्था
__अनुशासन से इन क्रियाओं की कला सीखने को मिलती है। प्रत्येक क्रिया के साथ कब, क्या, कैसे और क्यों लगाने से जो उत्तर हमें प्राप्त होता है, उससे क्रिया का विवेक मिलता है।
कुछ उदाहरण देखिए :
भोजन कब करना चाहिए ? इसका सामान्य उत्तर यह है कि कम-सेकम तीन घंटे से पहले नहीं। अगर भूख न हो तो उस समय भी नहीं। आत्रेय ने अपनी एक लाख पद्य वाली संहिता का सार एक चरण में यही कहा-'जीर्ण भोजन मात्रेय'। अगला भोजन जीर्ण होने के बाद खाना चाहिए, पहले नहीं । शरीर-शास्त्रियों ने इस बारे में कहा है । जैसे
क्या खाना चाहिए ? जो शरीर के लिए आवश्यक हो। कैसे खाना चाहिए ? चबाकर। कहां खाना चाहिए ?
शान्त वातावरण में। क्रोध-अवस्था में भोजन करने से रस की परिणति अच्छी नहीं होती।
कब वोलना चाहिए?
जब बोलने की आवश्यकता हो और अनुकूल अवसर हो। दो व्यक्ति बातें करते हों, तब बीच में नहीं बोलना चाहिए। तनाव का वातावरण हो, तब नहीं बोलना चाहिए। स्थिति को समझकर और देखकर बोलना चाहिए।
क्या बोलना चाहिए ? जो बोलना आवश्यक हो । कैसे बोलना चाहिए ?
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