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६६ । तट दो : प्रवाह एक
शिथिल कर रहे हैं । अवयवों को शिथिल करने का क्रम यह रखिए-गर्दन, कन्धा, छाती, पेट-दाएं-बाएं, पृष्ठ-भाग, भुजा, हाथ, हथेली, उंगली, कटि, टांग, पैर और उंगली। अब मांसपेशियों को शिथिल कीजिए। मन से शरीर के भाग और मांसपेशियों का अवलोकन कीजिए। इस प्रकार अवयवों
और मांसपेशियों के शिथिलन के बाद स्थूल-शरीर से सम्बन्ध-विच्छेद और सूक्ष्म-शरीर से दृढ़ सम्बन्ध स्थापन का ध्यान कीजिए।
सूक्ष्म शरीर दो हैं : (१) तैजस, (२) कार्मण।
तैजस-शरीर विद्युत्व का शरीर है। उसके साथ सम्बन्ध स्थापित कर प्रकाश का अनुभव कीजिए। शक्ति और दीप्ति की प्राप्ति का यह प्रबल माध्यम है।
कार्मण शरीर के साथ सम्बन्ध स्थापित कर भेद-विज्ञान का अभ्यास कीजिए।
इस भूमिका में ममत्व-विसर्जनहो जाएगा। शरीर मेरा है—यह मानसिक भ्रांति विजित हो जाएगी।
यदि आप सोकर कायोत्सर्ग करना चाहते हैं तो१. सीधे लेट जाएं। २. सिर से लेकर पैर तक के अवयवों को पहले तानें और फिर क्रमशः
उन्हें स्थिर करें। ३. दीर्घ श्वास लें। ४. सम मात्रा में श्वास लें। ५. मन को श्वास-प्रश्वास में लगा किसी एक विचार पर स्थिर हो जाएं।
सुप्त कायोत्सर्ग में दोनों हाथों-पैरों को अलग-अलग रखिए। यदि आप खड़े-खड़े कायोत्सर्ग करना चाहते हैं तो१. पैरों के पंजों को पीछे से सटाकर और आगे से चार अंगुल के अन्तर
से स्थापित कर खड़े हो जाइए। २. दोनों हाथों को नीचे की ओर फैला दीजिए । ३. दीर्घ श्वास लीजिए। ४. मानसिक निरीक्षण के साथ-साथ शरीर के हर अवयव को शिथिल __ कीजिए और ध्यान में मग्न हो जाइए।
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