Book Title: Tat Do Pravah Ek
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 64
________________ यदि मनुष्य क्रूर नहीं होता मनुष्य सीमा में बँधा हुआ जन्म लेता है । असीम बनने का प्रयत्न उसका सिद्धान्त पक्ष है। मनुष्य व्यक्ति के रूप में आता है, सामुदायिक बनता है जीवन की उपयोगिता के लिए। जीवन में कुछ ऐसे तत्त्व हैं, जो प्रसरणशील नहीं हैं। उनकी सीमा में मनुष्य की वैयक्तिकता सुरक्षित रहती है। कुछ तत्त्व प्रसरणशील होते हैं, वे उसे सामुदायिक बनाते हैं। समाज की भाषा में वैयक्तिकता अच्छी नहीं है, तो कोरी सामुदायिकता भी अच्छी नहीं है। ___दोनों की अपनी-अपनी सीमाएं हैं। व्यक्ति को सामुदायिकता के उस बिन्दु पर नहीं पहंचना चाहिए, जहां उसकी स्वतन्त्र सत्ता ही न रहे। उसे वैयक्तिकता की वह रेखा भी निर्मित नहीं करनी चाहिए, जो स्वार्थ के लिए औरों के अस्तित्व को अपने में विलीन कर दे । स्वस्थ विचार वही है, जो दोनों की मर्यादा का व्यवस्थापन करे। वैयक्तिकता का नाश सत्तात्मक अधिनायकवाद से होता है। सत्ता को उत्तेजन देता है व्यक्ति का स्वार्थ—सामुदायिक सीमा का अतिक्रमण । __मनुष्य में अपनी सुख-सुविधा के लिए एक विशेष प्रकार का रागात्मक मनोभाव होता है। वही उसे दूसरों के प्रति क्रूर बनाता है। यदि स्व के प्रति अनुराग न हो तो पर के प्रति क्रूर होने का कोई कारण ही न रहे । शत्रुता इसीलिए उत्पन्न होती है कि मनुष्य अपने हितों को दूसरों के हितों के विनाश की सीमा तक ले जाता है। यदि वह अपनी सीमा में रहे, तो सब एक-दूसरे के मित्र ही मिलें। मैत्री में जो आनन्द, शान्ति और अभय है, वह शत्रुता में नहीं है । शत्रु-भाव की सृष्टि सहज है, किन्तु उसके परिणामों से बचना सहज नहीं है। विश्व के रंगमंच पर अनेक रक्तक्रान्तियाँ हुईं। कुछेक व्यक्ति क्रू र बने । उन्होंने दूसरों के स्वार्थों पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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