Book Title: Tat Do Pravah Ek
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 62
________________ जीव का अस्तित्व : जिज्ञासा और समाधान । ५३ नहीं तो रागादिक पौद्गलिक कैसे सिद्ध हो सकेंगे ? रागादिक का अस्तित्व क्या जीव से अलग सिद्ध किया जा सकता है ? इसके सिवाय अपौद्गलिक जीवात्मा में कृष्ण नीलादि लेश्याएं भी कैसे बन सकती हैं ? । चैतन्य-गुण-विशिष्ट सूक्ष्मातिसूक्ष्म अखण्ड पुद्गल पिण्ड (काय)को जीव मानने पर निष्पन्न क्या होगा ? कुछ पुद्गल चैतन्य-गुण-विशिष्ट हैं और और कुछ पुद्गल चैतन्य-गुण-रहित हैं—यह श्रेणी-विभाग वैसे ही रहा, जैसे माना जाता है कि जीव चैतन्य-गुण-विशिष्ट है और पुद्गल चैतन्य-गुणरहित हैं। सब पुगाल चैतन्य-गुण-विशिष्ट होते तो स्थिति में अन्तर आता। कुछ पुद्गलों को चैतन्य-गुण-विशिष्ट भानने से नामान्तर मात्र हुआ, अर्थान्तर कुछ भी नहीं। समीक्षा मूल प्रश्न यह है कि चेतन और अचेतन के बीच एक भेद-रेखा अवश्य है। और वह वर्तनाशिक सत्य है । अतीत और भविष्य का सत्य क्या है ? १.. क्या चेतन अचेतन से चेतन के रूप में विकसित हुआ है या सदा चेतन ही रहा है ? २. क्या चेतन कभी अचेतन के रूप में परिवर्तित हो जाएगा या सदा चेतन ही रहेगा ?, ३. क्या पहले चेतन ही था और अचेतन उससे सृष्ट हुआ? ४. क्या पहले अचेतन ही था और चेतन उससे सष्ट हुआ? ५. क्या चेतन और अचेतन दोनों स्वतंत्र थे ?. अद्वैतवादं के अनुसार चेतन से अचेतन अस्तित्व में आया है.। चार्वाक और कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार अचेतन से चेतन अस्तित्व में आया है। जैन तत्त्व-विद्या के अनुसार दोनों का अस्तित्व स्वतंत्र है। तीनों मत हमारे लिए प्रत्यक्ष नहीं हैं, इसीलिए इनके सम्बन्ध में सत्य क्या है, नहीं बता सकते। मैं अपनी बात कहं-चेतन तत्त्व के विषय में मैंने दर्शनशास्त्र के जितने स्थल पढ़े उनले न तो मेरी यह आस्था बनी कि जीव है और न यह आस्था बनी कि जीव नहीं है। जो जीव का अस्तित्व स्वीकार कर रहा है, वह भी संस्कारगत सत्य है और जो उनका अस्तित्व नहीं स्वीकार रहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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