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योग । ८७
तक जाकर वापस आता है, यह श्वास चन्द्रामृत से आता है, इसलिए ठण्डा होता है। सूर्य (हृदय) का स्पर्श कर जो वायु बाहर निकलता है, वह ऊष्ण और जो चन्द्र (नासिकाग्र से बाहर बारह अंगुल स्थान) का स्पर्श कर अन्दर आता है, वह शीत होता है। ___ चन्द्र नाड़ी में प्राण की गति होती है, तब शरीर शीत होता है। सूर्य नाड़ी में प्राण की गति होती है, तब शरीर उष्ण होता है, इसलिए यह मान्यता है कि दिन में चन्द्र और रात को सूर्य नाड़ी चलानी चाहिए। प्रातः
और मध्याह्न में जिस व्यक्ति का चन्द्र-स्वर और सायंकाल में सूर्य-स्वर चलता है, वह स्वस्थ होता है। भोजन के बाद आधी घड़ी तक सूर्य-स्वर
और जल पीने के बाद आधी घड़ी तक चन्द्र-स्वर चलता रहे तो स्वास्थ्य के लिए हितकर होता है। चन्द्र-स्वर से पित्त-प्रकोप से उत्पन्न रोग दूर होते हैं और सूर्य-स्वर से वात-कफ के प्रकोप से उत्पन्न रोग दूर होते हैं। वायु वायु के पांच प्रकार हैं :
(१) प्राण (२) उदान (३) व्यान (४) समान
(५) अपान इनके स्थान, गति और कार्य इस प्रकार हैं : स्थान : सिर, छाती, हृदय, पाचकाग्नि के पास, गुदा । गति : छाती, कण्ठ, नासा, नाभि, गला, सर्वत्वचा, कोष्ठ, श्रोणि,
वस्ति, मेहन, ऊरु। कार्य : (१) बुद्धि, हृदय, इन्द्रिय और मन को धारण करना तथा
थूकना; छींक, डकार, निःश्वास और अन्न-प्रवेश--ये
प्राण-वायु के कार्य हैं। (२) वाणी की प्रवृत्ति, उत्साह, बल, वर्ण, कफ, स्मृति—ये
उदान-वायु के कार्य हैं। (३) गति, अंग के नीचे ले जाना, ऊपर लाना, आंख को मूंदना
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