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जीवन के नये मूल्य
आज हिन्दुस्तान संक्रमणकाल में गुजर रहा है, उसके पुराने मूल्य बदल रहे हैं और नये मूल्य अभी स्थिर नहीं हुए हैं। इसीलिए वह अनेक नयी कठिनाइयों का सामना करने को विवश है। पुराने लोग धर्म को सर्वाधिक मूल्य देते थे। आज के बुद्धिवादी युवक की दृष्टि में उसका कोई मूल्य नहीं है। धर्म को सर्वाधिक मूल्य इसलिए दिया जाता था कि उससे मोक्ष मिलता है, मनुष्य सारे बन्धनों से मुक्त होता है । स्वतन्त्रता का मूल्य आज भी सर्वोपरि है। किन्तु उसका सम्बन्ध केवल राष्ट्र से है-भौगोलिक सीमा से है । मनुष्य की इन्द्रियों, मन और चेतना की स्वतन्त्रता से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है। धर्म का सिद्धान्त पारलौकिक होते हुए भी इहलौकिक था। उससे वर्तमान जीवन भी पूर्णरूपेण अनुशासित होता था । आत्मानुशासन और संयम का अविरल प्रवाह जहां होता है, वहां दायित्वों, कर्तव्यों और मर्यादाओं के प्रति जागरूकता सहज ही हो जाती है। राष्ट्रीय स्वतन्त्रता का सिद्धान्त सर्वथा इहलौकिक है। वर्तमान जीवन को अनुशासित करने के लिए इसे सर्वोपरि माध्यम माना गया है।
किन्तु भारतीय युवक में जितनी धर्म-चेतना विलुप्त हुई है, उतनी राष्ट्रीय चेतना जागृत नहीं हुई है। इसीलिए उसमें आत्मानुशासन और संयम का अपेक्षाकृत अभाव है और इसीलिए वह दायित्वों, कर्तव्यों और मर्यादाओं के प्रति कम जागरूक है।
भारत का प्राचीन साहित्य विनय की गुण-गाथा से भरा पड़ा है । अविनीत विद्यार्थी विद्या का अपात्र समझा जाता था। अविनीत पुत्र पिता का उत्तराधिकार नहीं पा सकता था । अविनीत आदमी समाज में अनादृत होता था। इसीलिए विनय को बहुत मूल्य दिया जाता था । वह व्यक्ति
और समाज दोनों को एक शृंखला में पिरोए हुए था । आज का अध्यापक विद्यार्थी को विनय के आधार पर विद्या नहीं देता। वह यह नहीं देखता कि
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