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६० । तट दो : प्रवाह एक
शक्ति-संचय बहुत आवश्यक है । आज स्थिति बहुत भिन्न है। विश्वविद्यालय में मैं ब्रह्मचर्य के बारे में कहूं तो विद्यार्थी समझेंगे यह किस युग की बात कर रहा है। आज ब्रह्मचर्य के प्रति बहुत आदर की भावना नहीं है। उसकी अच्छाई के प्रति आस्था भी नहीं है। इसीलिए आज विलास का निरकुंश चक्र चल रहा है।
स्वस्थ समाज की अपेक्षाएं
आत्मानुशासन तथा संयम, विनम्रता, पारस्परिक विश्वास और इन्द्रिय-संयम-ये स्वस्थ समाज की अनिवार्य अपेक्षाएं हैं। प्राचीन समाज में ये अपेक्षाएं धर्म, विनय, वचन-निर्वाह और मर्यादाओं के द्वारा पूर्ण होती थी। अब इनके प्रति निष्ठा कम हो रही है । इसीलिए आज का युवक इनसे दूर हो रहा है। इन नामों से भले ही कोई दूर हो जाए पर इन अपेक्षाओं से कोई सामाजिक प्राणी दूर नहीं हो सकता। आत्मानुशासन के अभाव से व्यक्तिगत स्वतन्त्रता सुरक्षित नहीं रह सकती। जिस समाज में अपने-आप पर नियंत्रण करने की क्षमता होती है उस पर राज्य का नियंत्रण बहुत कम होता है। व्यक्तिगत स्वतन्त्रता बहुत व्यापक होती है। जैसे-जैसे समाज में आत्म-नियंत्रण की शक्ति कम होती है, वैसे-वैसे राज्यशक्ति व्यापक हो जाती है। लोग चाहते हैं राज्य बड़ा न हो और व्यक्ति इतना छोटा न हो और यह चाह अनुचित भी नहीं है । पर इसके लिए आत्म-नियन्त्रण की शक्ति का पुनर्मूल्यन अपेक्षित है। ___विनय के बिना शिष्टता समाप्त हो जाती है और बड़ों के प्रति छोटों का व्यवहार अशिष्ट हो जाता है। जहां अनुज अपने पूर्वजों का सम्मान नहीं करते, वहां प्रेम की धारा सूख जाती है । जीवन रेगिस्तान बन जाता है। ऐसा न हो वह सरसब्ज रहे। उसके लिए शिष्टता का पुनर्मूल्यन आवश्यक है।
वचन की प्रामाणिकता के अभाव में सामाजिक व्यवहार अस्त-व्यस्त हो जाता है। हर आदमी चाहता है हमारा व्यवहार ठीक ढंग से चले । पर उसके लिए कथनी और करनी की समानता का पुनर्मल्यन आवश्यक है ।
इन्द्रिय-संयम के बिना समाज' शक्तिहीन बन जाता है । सब लोग
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