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राष्ट्र-धर्म
धर्म व्यक्तिगत होता है। वह सामाजिक या राष्ट्रीय नहीं होता। जो सामाजिक या राष्ट्रीय होता है, वहध र्म का संस्थान हो सकता है, धर्म नहीं। धर्म का अर्थ है, आत्मा की पवित्रता। वह वैयक्तिक ही हो सकता है।
कर्तव्य राष्ट्रीय हो सकता है। उसका अर्थ है नीति को क्रियान्वित करना । उसका सम्बन्ध आत्मा की पवित्रता से नहीं है, किन्तु दायित्व से है।
नीति भी राष्ट्रीय हो सकती है। वह सामाजिक जीवन जीने की पद्धति है। समूचे समाज या राष्ट्र के लिए जनता उसे निश्चित करती है। वह व्यक्तिगत शुद्धि या रुचि के आधार पर नहीं बनती, किन्तु जनता के सामूहिक हितों के आधार पर निश्चित होती है। ___ कर्तव्य धर्म हो सकता है पर वह धर्म ही है, यह नहीं होता। नीति धर्म हो सकती है पर वह धर्म ही है, यह नहीं होता। इसका फलित अर्थ यह है कि धर्म और कर्तव्य सर्वथा एक नहीं हैं। महात्मा गांधी अहिंसा को अपना धर्म मानते थे। कांग्रेस ने उसे नीति के रूप में स्वीकार किया था। धर्म आत्मा से अभिन्न होता है, उसे छोड़ा नहीं जा सकता। नीति समयसमय पर बदलती रहती है।
आज हिन्दुस्तान के सामने धर्म, कर्तव्य और नीति--ये तीनों प्रश्नचिह्न बने हुए हैं। सदाचार को अपना धर्ममानकर चलने वाले लोग बहुत कम हैं। वह राष्ट्रीय कर्तव्य के रूप में भी नहीं अपनाया गया है। राष्ट्रीय नीति के रूप में भी उसे बहुत बल नहीं मिल रहा है । इसीलिए असदाचार सदाचार पर हावी हो रहा है। इस स्थिति को बदलने के लिए धार्मिक पवित्रता का वातावरण बनाना, कर्तव्यबुद्धि को जगाना और नीति का दढ़ता के साथ निर्धारण करना--ये तीनों अपेक्षित माने जा रहे हैं। इस सचाई को हम अस्वीकार नहीं करते कि धार्मिक-बुद्धि भी नीति जितनी
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