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४२ । तट दोः प्रवाह एक
लिए हिंसा के क्षेत्र में कहा जाता है, शक्ति का सफल प्रतिकार शक्ति ही
अल्प अहिंसा की शक्ति बड़ी अहिंसा की शक्ति से परास्त नहीं, इसलिए अहिंसा के क्षेत्र में नहीं कहा जा सकता कि शक्ति का सफल प्रतिकार शक्ति ही है। अहिंसा की शक्ति से हिंसा की शक्ति परास्त नहीं होती, किन्तु परिवर्तित हो जाती है। अहिंसा में मारक शक्ति नहीं है। उससे हिंसक का हृदय प्रभावित हो सकता है, परिवर्तित हो सकता है, अहिंसक बन सकता है पर उसका प्रभावित-परिवर्तित होना अनिवार्य नहीं है।
४. अन्तिम प्रश्न प्रथम प्रश्न से भिन्न नहीं है, उसी का पूरक है। अहिंसा का स्वरूप है मैत्री का अनन्त प्रवाह। उसका जगत् सीमाओं या विभाजन-रेखाओं से मुक्त होता है। राष्ट्र एक भौगोलिक सीमा है । इसलिए अहिंसा के सामने इस या उसकी सुरक्षा का प्रश्न ही नहीं होता। उसके सामने सबकी सुरक्षा का प्रश्न होता है। ___अहिंसा की मर्यादा है सबकी सुरक्षा-प्राणी-मात्र की सुरक्षा । एक की सुरक्षा और दूसरे की अ-सुरक्षा यह अहिंसा की मर्यादा का भंग है।
अहिंसा की मर्यादा है आत्मिक सुरक्षा । भौतिक सुरक्षा उससे हो सकती है—यह कहने की अपेक्षा यह कहना अधिक सरल है कि उससे नहीं हो सकती। __ शस्त्र-शक्ति से आत्मिक सुरक्षा नहीं हो सकती तब हम कैसे आशा करें कि अहिंसा की शक्ति से भौतिक सुरक्षा हो सकती है।
५. अहिंसा का अस्त्र आणविक अस्त्र से भी अधिक शक्तिशाली है। किन्तु उसका प्रयोग शक्तिशाली व्यक्ति ही कर सकता है। हर व्यक्ति से उसके प्रयोग की आशा करना कठिन है। शस्त्र-शक्ति का प्रयोग एक कायर आदमी के लिए संभव नहीं, वैसे ही अहिंसा की शक्ति का प्रयोग उस शूरवीर के लिए भी संभव नहीं, जिसके मन में परिग्रह और जीवन का मोह है तथा जिसका मन घृणा से भरा है।
__अहिंसा की शक्ति का सामान्य प्रयोग हर आदमी कर सकता है पर उसके असाधारण प्रयोग की अपेक्षा उन व्यक्तियों से ही की जा सकती है, जिनका प्रेमघृणा पर विजय पा चुका, जिनकी दृष्टि में मनुष्य केवल मनुष्य
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