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जीवित धर्म
मैं धर्म की उपासना करता हूं पर उसकी नहीं करता, जो मृत है-मैं उसकी उपासना करता हूं जो जीवित है । जीवित वही है जिसका वर्तमान पर अधिकार है । अतीत असत् होता है, इसलिए कि वह अपना कार्य कर चुकता है । भावी इसलिए असत् होता है कि वह कार्यक्षम नहीं होता। सत् वर्तमान है। उसकी उज्ज्वलता से भूत चमकता है और भावी बनता है।
तुम जीवित रहना चाहते हो तो कोरे अतीत के गीत मत गाओ। कोरी कल्पना की उड़ान मत भरो। आज क्या करना प्राप्त है इसे सोचो, दो क्षण गहराई से सोचो। __तुम सहिष्णु हो, अनुशासित हो, स्थिरचेता हो, परिवर्तन की मर्यादा को जानते हो तो तुम जीवित हो, तुम्हारा धर्म जीवित है, वर्तमान पर तुम्हारा अधिकार है और तुम्हारा वर्तमान उज्ज्वल है। ___अपनी भूलों को देखने, सुनने, स्वीकार करने और उनका परिमार्जन करने में तुम क्षम हो तो तुम जीवित हो, तुम्हारा धर्म जीवित है, वर्तमान पर तुम्हारा अधिकार है और तुम्हारा वर्तमान उज्ज्वल है।
दूसरों की अच्छाइयों को देखने, सुनने, स्वीकार करने और अपनाने में तुम क्षम हो तो तुम जीवित हो, तुम्हारा धर्म जीवित है, वर्तमान पर तुम्हारा अधिकार है और तुम्हारा वर्तमान उज्ज्वल है।
धर्म इसीलिए जीवित तत्त्व है कि उसमें वर्तमान उज्ज्वल होता है। वह इसीलिए शाश्वत तत्त्व है कि उसमें वर्तमान सदा उज्ज्वल होता है।
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