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एकता की समस्या । २१
जातीयता किसी दिन समाप्त हो सकती है। तब सब लोग अपनेआपको भारतीय मानने में गौरव अनुभव करेंगे। जन्मना कोई बड़ाछोटा, स्पश्य-अस्पृश्य नहीं होता यानी जातिवाद समाप्त हो जाएगा। प्रांतों की व्यवस्था में भी सम्भव है परिवर्तन हो जाए। प्रांतों का विभाजन प्रशासन की सुविधा का साधन रहकर अलगाव का प्रमुख हेतु बनता है तो यह स्वयं एक दिन चिन्तनीय होगा किन्तु भाषा और राजनीतिक दल एकता के स्थायी शत्रु हैं। भाषा या राजनीतिक दल एक ही हो, यह कल्पना कुछ जटिल है। फिर भी ये दोनों जीवन को बहुत निकटता से प्रभावित करने वाले तत्त्व हैं। इसलिए इनके बारे में बहुत गहराई से सोचना चाहिए । भाषा का प्रश्न भी राजनीति से मिला नहीं है। परन्तु राजनीतिक व्यक्ति ही अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए भाषायी विवाद खड़ा करते हैं। जो लोग राष्ट्र-संचालन के लिए अधिक उत्तरदायी हैं, उनके द्वारा भी राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहन नहीं मिलता है, यह सचमुच आश्चर्य की बात है।
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