________________
३० । तट दो : प्रवाह एक
जिस व्यक्ति के मन में विषमता होती है, उसमें अहिंसा पनप नहीं सकती। जिस राष्ट्र में आर्थिक, जातीय और साम्प्रदायिक विषमता होती है, वहां जनतन्त्र नहीं पनप सकता।
ऐशियायी राष्ट्र अभी जनतंत्र के प्रभात की स्थिति में हैं। अभी उनमें विषमता के तीनों प्रकार प्राप्त हैं । ऐशियायी राजनयिकों ने जनतंत्र का मार्ग पूर्व-मान्यता के रूप में चुना है। उसे वरदान के रूप में प्रमाणित करना अभी शेष है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि जनतंत्र का विकल्प शासन-प्रणाली के इतिहास में सर्वाधिक सफल है। स्वतन्त्रता व्यक्ति की सर्वोत्तम निधि है। वह उसकी सुरक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने को भी तत्पर रहता है। शासन-क्षेत्र में स्वतन्त्रता अपहृत होती है किन्तु जनतन्त्र की प्रणाली स्वतन्त्रता-अपहरण के दोष से अपने को अधिक मुक्त रख सकी है।
व्यक्ति शासन के अधीन होता है, उसके दो हेतु हैं : १. सुरक्षा का आश्वासन २. सहयोग का आश्वासन
व्यक्ति अपनी स्वतन्त्रता देता है और उसके बदले में सुरक्षा एवं सहयोग प्राप्त करता है। किन्तु कोई भी व्यक्ति सुरक्षा और सहयोग की उपलब्धि के लिए अपनी स्वतन्त्रता से हाथ धोना नहीं चाहता।
अधिनायकतावादी शासन-प्रणाली में तंत्र की सुव्यवस्था और सुस्थिरता होती है, फिर भी उसमें व्यक्ति को वह मूल्य प्राप्त नहीं होता, जो उसे चेतनावान् होने के नाते प्राप्त है। ___लोकतंत्रीय प्रणाली में व्यवस्था और स्थिरता का पक्ष कभी-कभी दुर्बल भी रहता है पर उसमें हर व्यक्ति को विकास का समान अवसर प्राप्त होता है।
व्यक्ति समाज में विलीन होकर भी जहां अपनी वैयक्तिकता को सुरक्षित पाता है, वहां वह अधिक संतोष का अनुभव करता है। इस तोष की अनुभूति ने ही जनतन्त्र को विकासशील बनाया है।
एशिया अभी तक वर्तमान युग की गति के साथ नहीं है। आर्थिक, राजनीतिक और वैज्ञानिक उपलब्धियों में अभी वह पश्चिमी राष्ट्रों से
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org