Book Title: Tat Do Pravah Ek
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 46
________________ युद्ध और अहिंसा । ३७ आत्मरक्षा के प्रत्येक राष्ट्र के अधिकार के प्रति आदर । ६. किसी भी बड़ी शक्ति के स्वार्थ की पूर्ति के लिए सामूहिक सुरक्षा के आयोजनों के उपयोग से अलग रहना, एक देश का दूसरे देश पर दबाव न डालना। ७. ऐसे कार्यों, आक्रमण अथवा बल-प्रयोग की धमकियों से अलग रहना जो किसी देश की प्रादेशिक अथवा राजनैतिक स्वाधीनता के विरुद्ध हों। ८. सभी आन्तरिक झगड़ों का शान्तिपूर्ण उपायों से निपटारा करना । ६. पारस्परिक हित एवं उपयोग को प्रोत्साहन देना । १०. न्याय और अन्तर्राष्ट्रीय दायित्वों के लिए सम्मान । १३ जून, १९५५ को नेहरू-बुलगानिन के संयुक्त वक्तव्य पर हस्ताक्षर होने के साथ पंचशील का क्षेत्र सैकड़ों गुना बढ़ गया। इस वक्तव्य में पंचशील का तीसरा सिद्धान्त और भी व्यापक रूप में स्वीकार किया गया। तीसरे सिद्धान्त का जो नया रूप बना, वह इस प्रकार था-किसी भी राजनीतिक, आर्थिक अथवा सैद्धान्तिक कारण से एक-दूसरे के मामलों में हस्तक्षेप न करना। भारत ने अपने शान्ति-प्रयत्न और भी तीव्र कर दिये थे । उसके शासक संभवतः इस तथ्य को भुला चुके थे जहां भौतिकता होती है, वहां स्वत्व होता है और जहां स्वत्व होता है, वहां सुरक्षा भी आवश्यक होती है और इस तथ्य को भी विस्मृत कर चुके थे कि कूटनीति की छाया में पलने वालों का अंतस्तल कभी भी अपने को बाह्य जगत् में प्रकट नहीं करता। भारत में चीन का आक्रमण होने पर ही उनको इस सत्य का साक्षात् हुआ कि भारत-जैसे शान्तिप्रिय और शान्तिरत देश पर भी कोई आक्रमण कर सकता है और वह भी एक प्राचीन मित्र। ' वर्तमान युद्ध का अतीत यह है और वर्तमान सामने है । युद्ध का समय सबके लिए बड़ा विकट होता है। उसके समर्थन और असमर्थन का प्रश्न ज्वलन्त हो जाता है। इस समय सिद्धान्तवादी लोग लगभग तीन विचारश्रेणियों में बंटे हुए हैं : १. आक्रमण में विश्वास रखने वाले हिंसावादी। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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