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१८ । तट दो : प्रवाह एक
व्यापक नहीं हो सकती । नीति के साथ कानन की शक्ति है, इसलिए वह अनिवार्यता है । कर्तव्य के साथ दण्ड-शक्ति नहीं है । वह बौद्धि क-शक्ति का विकास है। धर्म आत्मा का आन्तरिक प्रकाश है। नीति स्थूल है, कर्तव्य सूक्ष्म है और धर्म सूक्ष्मतम । धर्म की मान्यता है—तुम अच्छाई से भिन्न कुछ हो ही नहीं। कर्तव्य कहता है--तुम्हें अच्छाई का पालन करना चाहिए। नीति कहती है-तुम्हें अच्छाई का पालन करना होगा। ये तीनों रेखाएं अपने-अपने क्षेत्र में विकसित होती हैं, तब असदाचार सदाचार पर हावी नहीं हो सकता। नीति-निर्धारण का दायित्व सरकार परहै । कर्तव्य-बद्धि जगाने का दायित्व सामाजिक कार्यकर्ताओं पर है । धार्मिक पवित्रता को विकसित करने का दायित्व धार्मिक गुरुओं पर है। __ वर्तमान स्थिति को बदलने के लिए यह अपेक्षित है कि कोई आदमी
रिश्वत न ले और न दे। मिलावट न करे। व्यक्तिगत संग्रह को प्रोत्साहन न दे। दायित्व को लेकर जनता के प्रति अन्याय न करे। सामाजिक कुरीतियों का बहिष्कार करे।
इन्हें राष्ट्रीय नीति, राष्ट्रीय कर्तव्य और राष्ट्रीय धर्म के रूप में मान्यता मिलने पर वह सहज ही हो जाएगा, जो सब लोग करना चाहते हैं।
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