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४ : श्रमण, वर्ष ५८, अंक १/जनवरी-मार्च २००७
(अ) गंधोदक वर्षा (ब) पुष्प वृष्टि (स) सुगंधित वायु का प्रवाह (द) नगाड़ों की ध्वनि (इ) धन्य-धन्य की आकाश व्यापी ध्वनि ।
५. स्कन्ध उत्सव में देवमूर्ति का महावीर के चरणों में वन्दन।
६. विभिन्न रूपधारी देवों द्वारा उनकी (अ) विद्या सम्पन्नता, (ब) बुद्धि चातुर्य एवं (स) वीरता की परीक्षा (आगे देखिये) लेना। २. दानशीलता
अपनी दीक्षा ग्रहण के पूर्ववर्ती एक वर्ष में वे प्रतिदिन गरीबों को एक करोड़ स्वर्ण मुद्राओं का दान करते थे। इससे तत्कालीन राजकुलों की सम्पन्नता का पता चलता है। ३. दीक्षाकाल में कष्ट-सहिष्णुता
अपने बारह वर्षीय दीक्षाकाल में उन्हें तीन कोटि के उच्च, मध्यम एवं जघन्य उपसर्ग सहने पड़े।
१. कटपूतना नामक व्यंतरी तथा अप्सरा द्वारा साधना से विचलित होने के अनेक प्रलोभना
२. संगमदेव द्वारा विभिन्न रूपों में बीस प्रकार की यातना (विचलन के उपसर्ग)।
३. सामान्य जन (ग्वाला आदि) द्वारा कानों में शलाका प्रविष्टि, उन्हें चोर, जासूस आदि के रूप में दंडन।
उन्होंने इन उपसर्गों का धैर्यपूर्वक एवं अंतःशक्ति के बल से सामना किया और उपसर्ग करने वालों को प्रभावित कर अपना भक्त बनाया।
४. उन्होंने साढ़े बारह वर्ष के साधनाकाल में केवल ३५० दिन ही आहार लिया। ४. चमत्कारी प्रसंग : विभिन्न वेषधारी देवों का वशीकरण
१. किशोर रूपधारी देव का मुष्टिप्रहार से वशीकरण। २. ब्राह्मण वेशधारी देव को विद्यालय में विजित करना। ३. चण्डकौशिक सर्प का वशीकरण। ४. शूलपाणि यक्ष का वशीकरण एवं प्रभावन। ५. हस्तिरूपधारी देव का वशीकरण।