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तीस वर्ष और तीन वर्ष :
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प्रदर्शन, ५. जातिवाद की प्रमुखता (पुरोहितवाद), ६. स्त्रियों की शोचनीय स्थिति ७. उत्तमता की धारणा, ८. अंधविश्वास और आत्मश्लाघा ९. भूत-प्रेत में विश्वास। इसका अर्थ यह है कि छ: सौ वर्षों में मानव का विकास नगण्य ही हुआ होगा।
दोनों ही महापुरुषों ने इन समस्याओं के युगानुरूप समाधान दिये, पर उनमें अनेक प्रकार से अंतर था। दोनों ही महापुरुषों के जीवन-चरित व उपदेशों के विशिष्ट रूपों की झांकी यहाँ दी जा रही है। भगवान महावीर
भगवान महावीर जैनों की तीर्थंकर परम्परा के इस युग के धर्म-युगानुकूलन के अंतिम प्रतिनिधि थे। वे भारत के वैशाली गणतंत्र के प्रसिद्ध उच्चकुलीन क्षत्रिय कुल में जन्में थे। उनका पालन-पोषण एवं शिक्षा-दीक्षा राजमहलों में हुई। वे अत्यन्त बुद्धिमान, ज्ञानी एवं ऋद्धिसम्पन्न थे। अपने राजकीय पर्यटनों में उन्होंने तत्कालीन समाज के अनेक परम्परावादी और अरुचिकर रूप देखे और उन्हें सुधारने हेतु उपायों का चिंतन किया। इस हेतु उन्होंने घर-बार छोड़कर साधना के मार्ग को ही उपयोगी दिशा-निर्देशक माना। वे ३० वर्ष की वय में मुनि बने, १२ वर्ष ध्यान-साधना की
और ४२ वर्ष की वय में सर्वज्ञता प्राप्त कर उन्होंने संसार को ही स्वर्ग बनाने का निश्चय किया। उनके वर्षावासों की सूची से पता चलता है कि अपने साधना-काल में उन्होंने भारत के पूरे पूर्वी भाग में परिभ्रमण किया। वे ३० वर्षों के धर्मोपदेशों के बाद.७२ वर्ष की अवस्था में निर्वाण को प्राप्त हुए।
___ महावीर के जीवन की अनेक घटनायें लौकिक, लोकोत्तर और चमत्कारिक हैं। इनमें से बाईस घटनाओं का यहाँ उल्लेख अपेक्षित है : १. लौकिक एवं लोकोत्तर घटनायें
१. इनके गर्भ, जन्म, दीक्षा, ज्ञान-प्राप्ति एवं निर्वाण के विशेष उत्सव न केवल राजकुल एवं सामान्यजनों ने ही असामान्य रीति से मनायें, अपितु देवताओं ने भी मनायें।
२. उन्होंने देवों से स्पष्ट कहा है कि वे उनकी सहायता से अपनी साधना सफल नहीं बनाना चाहते।
३. यक्ष को अपनी साधना से वशीभूत करना।
४. दीर्घ उपवास की पारणा (पारणा पूर्ण होने) पर प्रथम आहार लेते ही दाता के घर पाँच दिव्य आश्चर्य प्रकट होना।