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SHRUTSAGAR
MAY-JUNE-2015 मालामां छे तेथी कृतिनुं संपादन करता ते अंगे विशेष ध्यान राखवु पड्यु छे. जो के क्यांक क्यांक आवा सामासिक शब्दोना समास निर्णयमां मुंजवण पण रही छे,
३. काव्यमां तीर्थंकरोना जीवनचरित्रना विभिन्न बोलो पैकी बे बोल १. मातार्नु नाम, २. पितानुं नाम नो अहीं विशेष उल्लेख करायो छे.
४. कृतिकार तरीके काव्यमा आचार्य श्री विशालसोमसूरि तथा पू. संघसोम एम बे नामो प्राप्त थाय छे. जो के पं. संघसोम, आचार्य श्री विशालसोमसूरिजीना शिष्य छे. तेथी एवं विचारी शकाय के आ कृतिनी रचना पं. संघसोमे ज करी होय पण पोताना गुरुना नामे कृति नोंधी होय. बीजु जैन गूर्जर कविओनी नोंध प्रमाणे पं. संघसोमनी एक ज चोवीशी मळे छे. ज्यारे तेमना गुरु आचार्य श्री विशालसोमसूरिना नामे एक पण कृतिओ नोंधाई नथी. तेथी एवं मानी शकाय के उपरोक्त रचना पण पं. संघसोमनी ज रचना होई शके छे.
५. प्रस्तुत कृति मध्यकालीन गुर्जर भाषानी होवा छता काव्यमां क्यांक क्यांक प्राकृत-अपभ्रंश-संस्कृत भाषाना शब्दो जोवा मळे छे. जे कविना भाषा प्रभुत्वनी जाण करे छे. संपादनार्थे प्रस्तुत कृतिनी हस्तप्रत आपवा बदल श्रीलावण्यसूरिजी जैन भंडार बोटादना व्यवस्थापकश्रीनो खूब खूब आभार...
___ चतुर्विंशति जिन नमस्कार भाई ॥ पंडितश्री लावण्यरत्नगणिगुरुभ्यो नमः ।। सकलसुखदातार सार, सेवक प्रतिपालइ, प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव, प्रणमुं त्रिहुं कालइ, नाभिराय-मरूदेविनंद, त्रिहुं जग साधारइ, उत्कट-विकट रागादि शत्रू, प्रभु ते संहारइ, श्रीविशालसोमस्रीसरू ए, अहिनिशि घ्याइ ध्यान, विमलाचलगिरिराजीउ, सुर-नर करइ गुणगान ॥१॥
॥ इति ऋषभदेव नमस्कारः ॥ भविककमलविबोधनदिनकर, विमलाचलगिरिनाथजी, करमकेलिभंजनगयवर, मुगतिनगरीसाथजी।
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