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गिरनार (री) मंडन नेमि जिन स्तवन
हिरेन के. दोशी
मध्यकालीन साहित्यमां तीर्थमहिमा अने प्रभुस्तवना जेवा विषयोने गुंथीने रचायेली कृतिओ सविशेष प्रमाणमां उपलब्ध छे. भक्त हृदयमां संवेदाता तीव्र संवदेना बळे तीर्थ के तीर्थमंडन प्रत्ये परिपूर्ण भक्तिसभर शब्दो प्राप्त थाय छे. आ प्रकारनी कृतिओ साहित्यमां स्तोत्र, तीर्थमाला, चैत्यपरिपाटी, स्तवन जेवा नामोथी प्रचलित बने छे.
आज एक अप्रकाशित गिरनार मंडन नेमिजिन स्तवन अत्रे प्रकाशित कर्यं छे. कविए कृतिना माध्यमे नेमिजिनेश्वरना जीवन- कवननो परिचय आप्यो छे. गिरनार तीर्थनी एवी कोई ख़ास हकीकत आ कृतिमां प्राप्त थती नथी. पशुओना चित्कारथी नेमकुमारने प्रगटेली करुणानी गाथा आ कृतिनुं केन्द्रबिंदु होवानो अनुभव वाचन द्वारा थया वगर रहेतो नथी.
कृतिनी बीजी कडीमां ज 'सकलजीव ऊगारवा, परिहरइ जेणई निज नार' कही कविए रचनानुं उद्गम स्थान जणाव्युं छे. कुल बावन जेटली कडीओमां नेमि जिनेश्वरना जीवन प्रसंगो ढाळ अने देशी बंधमां रजू थया छे.
आगळनी कडीओमां परमात्मानो जन्म, परमात्मानं देहवर्णन, कृष्ण मेळाप, कृष्णनी गोपीओ द्वारा नेमिकुमारने विवाह माटे मनाववु, नेमिकुमारनुं मौन रहेवुं, जान प्रस्थान, जाननुं तोरणद्वारे पहोंचवुं, नेमिकुमारनी पशुओना पोकार बाबते नेमिकुमारनी पृच्छा, चाकरनो प्रत्युत्तर, जाननुं परत फरवु, राजुलनो विलाप, नेमिकुमारनुं प्रव्रज्या ग्रहण, केवळज्ञाननी प्राप्ति, परमात्मानुं निर्वाण, परमात्माना परिवारनी नोंध, गिरनार तीर्थ पर कृष्ण द्वारा मिजिननी प्रतिमानुं स्थापन जेवी गुणोत्कीर्तना स्वरूप विगतोना अंते कवि पोतानी गुरु परंपरा जणावे छे. जो के रचना समय, रचना स्थान बाबते कृतिमा कोई उल्लेख प्राप्त थतो नथी.
जै.गू.क. के अन्य साधन ग्रंथोमां आ कृतिनो उल्लेख प्राप्त थयो न होवाथी कृतिना रचना संदर्भे विशेष विगतो प्राप्त थई नथी. परंतु एमनी अन्य कृतिओनी रचना संवतना आधारे आ सत्तरमां सैकानी कृति तरीके गणी शकाय. उपाध्याय राजरत्न कृत साहित्य अने एमनो संक्षिप्त परिचय श्रुतसागर अं. नं. ११ मां प्रकाशित करेल छे. जिज्ञासुए वधुं त्यांथी जोई लेवुं.
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