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श्रुतसागर
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मे - जून २०१५
चतुर्भुजी के समान बालास्वरूप में शोभायमान हो, हे देवी तुम बालास्वरूपेश्वरी हो ।
हे देवी०... ॥१०॥
त्वन्मन्त्राक्षरसप्रभावमहतां, वर्णाधनुर्विंशतिस्तत्राद्याप्रणवानुनासिकयुतां, मायारमावाग्भवम् ॥ कर्मो राजततश्चवर्णत्रिपुरा-रेवं च बीजेश्वरी ।
हे देवी! सुमुखे भवन्तु सततं सन्तुष्ट मातेश्वरी ॥११॥ ध्रु.
सरलार्थ-हे माता! तुम्हारा मन्त्राक्षर महान प्रभावों से युक्त है, २५वर्णात्मक अक्षरमातृका उसमें भी प्रारंभ में अनुनासिक सहित प्रणव (अ, उ, म=ॐ) जिन वर्णों से कार्य सिद्धि होती है ऐसे अनुनासिक युक्त प्रणव बीज ॐ मायाबीज ह्रीँ लक्ष्मी बीज श्रीं और वाणी बीज ऐं युक्त तुम त्रिपुरा भवानी बीजमंत्रों की देवी बीजेश्वरी हो । हे देवी०... ॥११॥
षड्बीजेव पुरो ततस्वदवद, वाग्वादिनी संयुता । भगवत्यापि च तुभ्यमग्रनमसौ, स्वाहारिति वर्णयुग् ॥ शुद्धाक्षरतरं यं पठित ( पठन्ति) सत्, मन्त्रं च मन्त्रेश्वरी । देवी! सुमुखे भवन्तु सततं, सन्तुष्ट मातेश्वरी ॥१२॥ध्रु.॥
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सरलार्थ-हे माता! प्रारंभ में षड्बीज मन्त्राक्षर तत्पश्चात् वद वद वाग्वादिनी युक्त भगवती तुभ्यं नमः स्वाहा इस वर्ण युक्त शुद्ध रूप से पठन किए गये मंत्र की अधिष्ठात्री तुम मन्त्रेश्वरी हो, श्लोक-११-१२ मंत्र - गर्भित हैं, मंत्र - “ॐ ह्रीं श्रीं ऐं वद वद वाग्वादिनी भगवती तुभ्यं नमः स्वाहा” फलतः बीजमन्त्र के पाठ का योग्य फल प्रदान करती हो । हे देवी०... ॥ १२ ॥
सद्ध्यानैर्शुचिचेलतस्त्रिकरणैर्सद्धूपसत्पूजितैः । सत्पञ्चामृतहोमभिश्च पठितै-र्लक्षासपाद ध्रुवम् ॥
सो स्यादिन्दु विधीज्यवित् कविसमा, धीमन्त ज्ञानेश्वरी । हे देवी! सुमुखे भवन्तु सततं सन्तुष्ट मातेश्वरी ॥१३॥ ध्रु. ॥
सरलार्थ-हे माता! जो निश्चय मन से शुद्ध वस्त्र धारण करके त्रिकरणपूर्वक (मन, वचन व कर्म से) सम्यक् प्रकार से तुम्हारा ध्यान, पूजन, पंचामृतस्नान, होमादि के द्वारा सवा लाख पाठ मन्त्रजाप व पाठादिपूर्वक तुम्हारी भक्ति करता है वह चन्द्रमा व विधि (ब्रह्मा, विष्णु) के समान पूजनीय, विद्वान तथा शुक्र के समान ज्ञानवान होता
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