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श्रुतसागर
मे-जून-२०१५ ग्रंथों में धर्मास्तिकाय आदि द्रव्यों का विस्तृत विवेचन होता है, उसे द्रव्यानुयोग के अन्तर्गत रखा गया है. इस ग्रंथ में छह द्रव्यों के विषय का निरूपण किया गया है. कई हस्तप्रतों के आधार पर पूज्य मुनि श्री वैराग्यरतिविजयजी म. सा. ने इस अप्रकाशित कृति का पाठ संशोधन व संपादन किया है.
प्रस्तावना के अन्तर्गत कृति, कर्ता आदि का विशिष्ट परिचय देते हुए विस्तृत अनुक्रमणिका दी गई है. अनेक उपयोगी परिशिष्ट में कृति से संबंधित सूचनाओं का संकलन किया गया है, जो संशोधकों व वाचकों का मार्ग सरल करेगा.
मुक्तिवाद- इस प्रकाशन के अन्तर्गत पाँच कृतियों को प्रकाशित किया गया है. १. गदाधर भट्टाचार्य विरचित मुक्तिवाद २. गंगेशोपाध्याय विरचित तत्त्वचिंतामणिगत मुक्तिवाद ३. महोपाध्याय यशोविजयजी विरचित न्यायालोकगत मुक्तिवाद ४. महोपाध्याय यशोविजयजी विरचित मुक्तिद्वात्रिंशिका ५. मुनि श्री वैराग्यरतिविजयजी द्वारा संकलित प्राचीन नवीन मुक्तिवाद संक्षेप.
इनमें कृति संख्या १ और ५ का गुजराती अनुवाद मुनि श्री वैराग्यरतिविजयजी, २ का डॉ. बलिराम शुक्ल, ३ का श्री यशोविजयगणि और ४ का आचार्य श्री चंद्रगुप्तसूरिजी द्वारा किया गया है. पाठ का संशोधन पूज्य मुनि श्री वैराग्यरतिविजयजी म. सा. ने किया है. कृति परिचय, विस्तृत विषयानुक्रमणिका एवं उपयोगी परिशिष्ट आदि से ग्रंथ को सुसज्जित किया गया है.
मनःस्थिरीकरण प्रकरण- इस प्रकाशन के अन्तर्गत श्री महेन्द्रसिंहसूरि विरचित मनःस्थिरीकरण प्रकरण के साथ स्वोपज्ञटीका भी प्रकाशित की गई है. विभिन्न हस्तप्रतों के आधार पर इस कृति का संशोधन संपादन का कार्य पूज्य मुनि श्री वैराग्यरतिविजयजी म. सा. ने बड़े ही सूक्ष्मतापूर्वक किया है. विस्तृत विषयानुक्रमणिका एवं परिशिष्ट के अन्तर्गत अनेक उपयोगी सूचनाओं का संकलन किया गया है. श्री रूपेन्द्रकुमार पगारिया द्वारा लिखित परिचय में ग्रन्थकार एवं ग्रन्थ का विस्तृत परिचय दिया गया है.
कल्पनियुक्ति- इस प्रकाशन में आचार्य श्री भद्रबाहुसूरि विरचित कल्पनियुक्ति एवं अज्ञात जैनश्रमण रचित चूर्णि तथा श्री माणिक्यशेखरसूरि द्वारा रचित अवचूरि प्रकाशित की गई है. कल्पनियुक्ति कल्पसूत्र की प्रस्तावना है.
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