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SHRUTSAGAR
MAY-JUNE-2015 प्रकाश में लाने का सुन्दर कार्य किया है. मूल कृति की भाषा प्राकृत होने से जन साधारण को अभ्यास करने में हो रही कठिनाइ को ध्यान में रखकर पूज्यश्री ने इसकी संस्कृत छाया बनाकर सुलभ कर दिया है. परिशिष्ट में संकलित सूचनाएँ बहुत उपयोगी हैं.
व्याप्तिपंचक- इस प्रकाशन में गंगेशोपाध्याय विरचित व्यान्तिपंचक के साथ उसकी प्रमुख तीन माथुरी, दिधिति एवं जागदीशी टीकाओं के साथ अंग्रेजी अनुवाद भी दिया गया है. पूज्य मुनि श्री वैराग्यरतिविजयजी म. सा. द्वारा संपादित इस ग्रंथ में डॉ. बालीराम शुक्ला कृत अंग्रेजी अनुवाद दिया गया है. प्रस्तावना में कर्ता एवं कृति का विस्तृत विवरण दिया गया है साथ ही परिशिष्ट में उपयोगी सूचनाओं का संकलन किया गया है.
योगकल्पलता- इस प्रकाशन में गिरीश कापडिया द्वारा रचित नमस्कार संबंधी रचनाओं का संकलन किया गया है. इन कृतियों में नमस्कार महामंत्र का महिमागान करते हुए कर्ता ने नमस्कार महामंत्र आत्मा और मोक्ष के लिए उपयोगी है इस बात को प्रभावक ढंग से प्रस्तुत किया है.
इन कृतियों का हिन्दी में अनुवाद डॉ. मृगेन्द्रनाथजी झा (साहित्याचार्य) ने किया है जो कृति के मूल भाव को स्पष्टरूप से प्रतिबिम्बित करता है. संपादन पूज्य मुनि श्री वैराग्यरतिविजयजी म. सा. ने किया है. परिशिष्ट में आत्मतत्त्वसमीक्षण का गुजराती एवं अंग्रेजी अनुवाद तथा आशाप्रेमस्तुति का अंग्रेजी अनुवाद दिया गया है जो जिज्ञासुओं के लिए बहुपयोगी सिद्ध होगा.
प्रशमरति प्रकरण- इस प्रकाशन के अन्तर्गत वाचक प्रवर श्री उमास्वातिजी विरचित प्रशमरति प्रकरण के साथ आचार्य श्री हरिभद्रसूरि रचित टीका, अज्ञात जैनश्रमण कृत टीका एवं अवचूरि प्रकाशित की गई है. पूज्य मुनि श्री वैराग्यरतिविजयजी म.सा. ने अनेक हस्तप्रतों के आधार पर संशोधन पूर्वक पाठ का निर्धारण किया है. विस्तृत अनुक्रमणिका, प्रस्तावना एवं परिशिष्ट के अन्तर्गत उपयोगी सूचनाओं का संकलन कर ग्रंथ को पूर्णता प्रदान की गई है.
स्याद्वादपुष्पकलिका- इस प्रकाशन के अन्तर्गत खरतरगच्छीय उपाध्याय श्री चारित्रनंदी द्वारा विरचित स्याद्वादपुष्पकलिका एवं उसकी स्वोपज्ञ वृत्ति को प्रकाशित की गई है. स्याद्वादपुष्पकलिका द्रव्यानुयोग का ग्रंथ है.
जैन वाङ्मय को अर्थ की दृष्टि से चार विभागों में विभक्त किया गया है. जिन .
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